कैसी नादानी ?
लाचार-वेवश सती-साध्वी रानी
शब्द हुए पुराने ,रीत हुई पुरानी।
अब तो आधुनिकता की मोडल है ये
बस चलती जहाँ इनकी मनमानी
कहते हैं समानता का युग है ये
ठीक है इन्हें अधिकार मिलना चाहिए
पर ये कैसा अधिकार ,कैसा दुरूपयोग ?
स्वच्छंद बन गयी स्वतंत्रताए
घूँघट तो उतरा कबका
साडी की जगह जींस छाये
सिगरेट -शराब बनी फैशन की निशानी
फिगर बिगड़ न जाये इसलिए
महरूम हुए बच्चे स्तनपान से
फैशन की इस दौड़ में
देखो कहीं फिसल न जाये
पति परमेश्वर का हसना बैंड हो गया
बच्चो की फिकर कहाँ
क्लब -पार्लरो से हैं दोस्ती निभानी
माडर्न बनने की है ये कैसी नादानी -
--पंकज भूषण पाठक "प्रियम "
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