Wednesday, December 27, 2017

जब जब भारत रोया है

जब बच्चों पे आयी आफत
मां का दिल फूट कर रोया है।
और जब निकले हैं मां के आँसू
एक नया शैलाब आया है।
तब भारत फिर से रोया है।

अरे!हम वीर तो कफ़न बांध चलनेवाले
दरिया आग भी पार उतर जाने वाले।
हर वक्त हमने प्रेम का बीज रोपा है
पर तूने हरबार पीठ पे ख़ंजर घोंपा है।
मत भूल ! जब भी बात स्वाभिमान की आयी है
खड़ा हुआ हर भारतवासी,हर वीर ने मौत गले लगाई है।
मत छेड़ शेर को जो अभी सोया है
भूल गया क्या वो दिन जब तू घुटनों के बल रोया है।
क्या यही है फितरत तुम्हारी 
आज तूने अबला नयन कोर भिगोया है।
अरे कहाँ है मानवता,सहिष्णुतावादी
बात बात हंगामा,जो देश की बर्बादी।
अवार्ड वापसी करनेवालों,क्या तेरा जमीर अभी सोया है
मां की पथराई आंखों से भी क्या तू नही रोया है।
यह देख फिर भारत रोया है।


मत भूल तेरा भी इतिहास बनेगा
समय लिखेगा परिहास तुम्हारा
तू खुद की नजरों में उपहास बनेगा।

कम न होंगे वतन पे मरनेवाले
आज़ादी को लहू में भरनेवाले
मत पूछो हाल उस मंजर का
जब जंग ने सुहाग का सिंदूर धोया है
तब भारत फिर रोया है।

देख सियासतदानों को
कदर नही कोई
वीर सपूत बलिदानों को
देख तमाशा कुर्सी का
जब अपनो का ज़मीर खोया है
तब तब भारत रोया है।

और सुनो तुम यही कहानी
आंखों से सूखी है क्या तुम्हारी पानी
जब जब भारत रोया है
तू अपना एक रंग धोया है
जब जब भारत रोया है
तू अपना एक अंग खोया है।
पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
26.12.17
2.20am

3 comments:

RINKI RAUT said...

बहुत उन्दा पंकितीय है

मन की वीणा said...

लाजवाब रचना देश भक्ति से परिपूर्ण। कहीं छोटा व्यंग पुठ लिये सुंदर।

संजय भास्‍कर said...

आज मैं आपके ब्लॉग पर आया और ब्लोगिंग के माध्यम से आपको पढने का अवसर मिला 
ख़ुशी हुई.