आज तेरा असली चेहरा सामने आया है।
पाक नापाक हो तू इतना गुजर गया
आँचल और आंसू से तू यूँ डर गया।
अरे!अधम अमानव अजगर
जरा भी हिम्मत होता तुझमे गर
यूँ न शीशे की दीवार लगाता
यूँ न एक मां और बेटे को मिलाता
एक बूढ़ी मां से भी तू इतना खौफ खाया है
की बेटे से गले लगने पर भी रोक लगाया है।
घिन आती है सोच पे तेरी
क्या मरी गयी है मति तेरी
जो चन्द दिनों का मेहमां है
उसपे भी तू न रहमा है
किस डर के मारे तूने
ये रिश्ता बुजदिली का निभाया है
एक अबला के आंसू को भी तूने
यूँ जार जार रुलाया है।
अरे हम तो तुम्हारे काफिरों को भी
बड़े सम्मान से जेल में रखते है।
आतंकी अफजल को भी इंसाफ देने
आधी रात कोर्ट खोल देते हैं।
और तुम तो बड़े बुजदिल निकले
एक बेटे को मां से मिलने
सिंदूर को सुहाग से जुड़ने
पर भी तूने ये कांच के पहरा लगाया है।
ये देख आज जिन्ना भी फुटकर रोया है।
भारत के हृदय का ही एक टुकड़ा था तू
बड़े जतन से बापू ने जिसका सहलाया था
आज़ादी पर तेरा भी ध्वज लहराया था
अरे शर्म करो ! क्या यही संस्कार पाया है
तूने आज एक मां के आंसू
और एक पत्नी का दिल दुखाया है।
मत भूलो भारत ने हरबार तुम्हे धूल चटाया है।
वक्त है जरा सम्भल जाओ
अब भी थोड़ा बदल जाओ
याद करो जब जब भारत रोया है
तू अपना तब एक अंग खोया है।
.......पंकज भूषण पाठक "प्रियम"
25.12.2017
11.20pm
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