ग़ज़ल
काफ़िया-आ
रदीफ़- हुआ
बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212 2212
क्या कुछ हुआ कैसे हुआ, कह दो मुझे क्या-क्या हुआ,
जब हम मिले तो क्या हुआ, सब कुछ कहो जो था हुआ।
आँखे लड़ी धड़कन बढ़ी, साँसे रुकी पलकें झुकी,
खामोशियाँ-खामोशियाँ, वो वक्त था ठहरा हुआ।
लब चुप रहे कुछ मत कहे, बातें मगर होती रही,
नैना कहे नैना सुने, बातें जिगर करता हुआ।
लम्हा वहीं थम सा गया, धरती गगन का वो मिलन,
बिजली पवन सूरज किरण, सबकुछ लगे रुकता हुआ।
तूफां उठा दरिया उमड़, सागर लहर माझी उतर,
दिल मिल गये जिस पल *प्रियम* सबकुछ लगा निखरा हुआ।
©पंकज प्रियम
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