Monday, August 10, 2020

८६३. झारखंड के प्रमुख तीर्थ स्थल

 झारखंड के प्रमुख तीर्थ स्थल

-पंकज भूषण पाठक ‘प्रियम

प्राकृतिक छटा और खनिज सम्पदा से परिपूर्ण झारखण्ड ऐतिहासिक व् धार्मिक स्थलों के मामले में काफी समृद्ध है. कल-कल करते नदी -झरने, दूर-दूर तक हरियाली बिखेरतीं मनोहारी पहाड़ी श्रृंखलाएं सहज ही आकर्षित करती हैं. इसके साथ की ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल एक अलग ही छाप छोडते हैं. झारखंड ही वह भू-खंड है जहाँ किसी न किसी देवी और देवताओं का वास रहा है . प्राचीन ग्रंथो में इसका स्पस्ट उल्लेख है. प्रस्तुत है झारखण्ड के प्रमुख तीर्थ स्थल-

 

 

बैद्यनाथ धाम -देवघर

बाबा धाम के नाम से पुरे विश्व में मशहूर देवघर झारखंड की पहचान है जहाँ पूरी दुनिया से लोग कामना लिंग को जल चढाने आते हैं. हर साल सावन में लाखो श्रद्धालु सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर १०५ किलोमीटर पैदल चलकर देवघर आते हैं और बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते हैं. पूरा महिना बोलबम के नारों से गूंजता रहता है. बैद्यनाथ मंदिर भगवान शिव के सबसे खास  12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर परिसर में ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव का मुख्य मंदिर है और साथ में 22 मंदिरों की श्रृंखला है।

देवघर ‘झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी’ के रूप में भी प्रसिद्ध है। जिसके आसपास कई धार्मिक पर्यटन स्थल हैं

 

 

1 नंदन पहाड़

 झारखंड के देवघर जिले में एक पहाड़ी की चोटी पर बना एक मनोरंजन पार्क है। आपको बता दें कि यह पार्क कई गतिविधियों के साथ एक पिकनिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यह पार्क इतना इतना ज्यादा आकर्षक स्थल है जहां हर उम्र के लोग यात्रा करते हैं। इस पार्क के क्षेत्र में लोग बोटिंग का मजा भी ले सकते हैं और सूर्योदय के आकर्षक दृश्य भी देख सकते हैं। अगर आप झारखंड की यात्रा करने की योजना बना रहें हैं तो इस पार्क को अपनी लिस्ट में अवश्य शामिल करना चाहिए।

 

2 तपोवन गुफाएँ और पहाड़ी

तपोवन देवघर से महज 10 किमी दूर स्थित है, जहां पर एक पवित्र शिव मंदिर स्थित है जिसे तपोनाथ महादेव के नाम से जाना जाता है। मंदिर के अलावा इस स्थान पर कई गुफाएं भी स्थित हैं जिसमें से एक गुफा में एक शिव लिंगम स्थापित है। इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि यहां पर ऋषि वाल्मीकि यहां तपस्या करने के लिए आए थे।

 

३ नौलखा मंदिर

मुख्य मंदिर से करीब 1.5 किमी की दूरी पर स्थित है। आपको बता दें कि यह मंदिर 146 फीट ऊंचा है और बेलूर में निर्मित रामकृष्ण के मंदिर के समान है। यह आकर्षक मंदिर राधा-कृष्ण को समर्पित है और इसके निर्माण की लगात 9 लाख रूपये थी जिसकी वजह से इस मंदिर का नाम नौलखा मंदिर रख दिया गया।

 

४ त्रिकुट पहाड़

त्रिकुट पहाड़ देवघर में सबसे रोमांचक पर्यटन स्थल में से एक है, जहां आप ट्रेकिंग, रोपेवे, वन्यजीवन एडवेंचर्स और एक सुरक्षित प्राकृतिक वापसी का आनंद ले सकते हैं। यह एक लोकप्रिय पिकनिक स्थान और तीर्थयात्रा के लिए एक जगह भी है। चढ़ाई पर घने जंगल में प्रसिद्ध त्रिकुटाचल महादेव मंदिर और ऋषि दयानंद की आश्रम है। ट्रायकिट हिल्स में तीन चोटियां होती हैं और सर्वोच्च चोटी सागर स्तर से 2470 फीट की ऊंचाई तक जाती है और जमीन से लगभग 1500 फीट जमीन पर ट्रेकिंग के लिए आदर्श स्थान बनाती है। तीनों चोटियों में से केवल दो को ट्रेकिंग के लिए सुरक्षित माना जाता है जबकि तीसरी व्यक्ति अपनी अत्यधिक ढलानों के कारण पहुंच योग्य नहीं है। रोपेवे पर्यटकों को केवल मुख्य चोटी के शीर्ष पर ले जाता है। देवघर का एक रोमांचक 360 डिग्री दृश्य ट्रायक पहर के शीर्ष से उपलब्ध है।

 

५ बासुकीनाथ मंदिर–

बासुकीनाथ मंदिर देवघर-दुमका राज्य राजमार्ग पर झारखंड के दुमका जिले में स्थित हिंदू धर्म का एक पवित्र मंदिर है, जो देश के सभी हिस्सों से बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा की जाती है जो कि पीठासीन देवता हैं। मंदिर में श्रावण के महीने में भक्तों की भीड़ काफी बढ़ जाती है, इस दौरान न केवल स्थानीय लोग बल्कि देश भर से भक्त यहां की यात्रा करते हैं। माना जाता है कि बासुकीनाथ मंदिर बाबा भोले नाथ का दरबार है।

६ सत्संग आश्रम –

सत्संग आश्रम एक पवित्र स्थान है जहां पर भक्त श्री श्री ठाकुर अनुकुलचंद्र के अनुयायी पूजा करने के लिए एकत्रित होते हैं। आपको बता दें कि सत्संग आश्रम के पर्यटन स्थल के रूप में भी काम करता है क्योंकि यहां पर एक चिड़ियाघर और एक संग्रहालय भी स्थित है।

 

मलूटी-मंदिरों का गाँव

मलूटी झारखण्ड राज्य के दुमका जिले में शिकारीपाड़ा के निकट एक छोटा सा कस्बा है। यहाँ ७२ पुराने मंदिर हैं जो बज बसन्त वंश के राज्यकाल में बने थे। इन मन्दिरों में रामायण तथा महाभारत और अन्य हिन्दू ग्रन्थों की विविध कथाओं के दृष्यों का चित्रण है इतिहासकारों के मुताबिक ये मंदिर 17वीं से लेकर 19वीं शताब्दी के बताए जाते हैं। इन मंदिरों में कई हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित है। जैसे देवी मौलाक्षी, भगवान शिव, विष्णु, मनसा देवी, मां दूर्गा और काली। देवी-देवताओं के अलावा यहां संतों की भी मूर्तियां स्थापित हैं। आप यहां संत बामाख्यापा को समर्पित मंदिर के दर्शन भी कर सकते है। मग्लोबल हेरिटेज फंड द्वारा मालुती मंदिर विलुप्त होती ऐतिहासिक धरोहर के रूप में चिन्हित किया गया है.

 

 

जगन्नाथ मन्दिर

झारखंड की राजधानी रांची की पहाड़ी पर बसा है प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर। वास्तुकला और मंदिर संरचना के मामले में यह मंदिर बिलकुल  पुरी के जगन्नाथ मंदिर के जैसा ही है। दर्शन के लिए भक्तों को पहाड़ी पर पैदल या निजी वाहनों की मदद से पहुंचना पड़ता है। साल में एक बार यहां भी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। जिसमें हिस्सा लेने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। स्थानीय लोगों के लिए यह मंदिर मुख्य आस्था का केंद्र माना जाता है.

आंजन धाम

झारखंड के गुमला नामक जिले के आंजन गांव में एक गुफा को भगवान हनुमान का जन्म स्थल माना जाता है। हनुमान जी की माता अंजनी के नाम से ही इस गांव का नाम आंजन पड़ा। यह गांव गुमला जिले से लगभग 22 किमी की दूर स्थित हैं. हनुमान जी की जन्मस्थली के कारण यह अब आंजनधाम के रूप में विख्यात है। यह धाम प्राचीन धार्मिक स्थलों में से एक है। साथ ही देश के अंदर यह ऐसा पहला मंदिर है, जिसमें भगवान हनुमान बाल अवस्था में माता अंजनी की गोद में बैठे हैं। रामनवमी के दिन प्रति वर्ष यहां विशाल मेला का आयोजन किया जाता है। हनुमान जयंती पर विशेष पूजा होती है। माता अंजनी पहाड़ की चोटी पर स्थित गुफा में रहती थीं। यह गुफा गांव से दो किमी दूर पहाड़ की चोटी पर है। इसी गुफा में माता अंजनी ने बालक हनुमान को जन्म दिया था। आज भी यह गुफा आंजन धाम में मौजूद है।

पालकोट/पम्पापुर

पंपापुर पहाड़ पर शबरी आश्रम भी है। सीता की खोज करते हुए जब राम व लक्ष्मण माता शबरी की कुटिया में आए थे, तो शबरी ने जूठे बेर खिलाकर उनका आदर-सत्कार किया था। किष्किंधा से कुछ दूरी पर एक गुफा है। जब बालि ने सुग्रीव को भगा दिया, तो सुग्रीव उसी गुफा में आकर छिप गए। इसे सुग्रीव गुफा कहा जाता है। गुफा के अंदर जल कुंड बना हुआ है। रामायण काल में किष्किंधा वानर राजा बालि का राज्य था। यह आज भी पंपापुर (अब पालकोट प्रखंड) में विद्यमान है। यह पालकोट प्रखंड के उमड़ा गांव के समीप स्थित है।

रामरेखा धाम

सिमडेगा मुख्यालय से लगभग 26 किलोमीटर दूर सुरम्य पर्वत पर स्थित रामरेखा धाम है. लोगों का कहना है कि 14 साल के दौरान वनवास अवधि में भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण ने इस जगह का दौरा किया था और कुछ समय के लिए यहां रहते थे। अग्निकुंड, चरण पंडुका, सीता चूल्हे, गुप्त गंगा आदि जैसे कुछ पुरातात्विक संरचनाओं का पता चलता है कि वनवास की अवधि के दौरान उन्होंने इस मार्ग का अनुसरण किया। भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण, हनुमान और भगवान शिव की मूर्तियाँ गुफा में स्थित है। कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल यहां एक मेला का आयोजन किया जाता है। विभिन्न राज्यों और सभी समुदाय के लोग यहां आते हैं और उनकी खुशी के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं।

 

 छिन्नमस्ता मंदिर, रामगढ़

 प्रसिद्ध सिद्धपीठ छिन्नमस्ता मंदिर झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित है, दामोदर और भैरवी नदी के संगम पर स्थित यह भव्य मंदिर देवी छिन्नमस्ता को समर्पित है। छिन्नमस्ता बिना सर वाली देवी हैं जिन्हें कमल के पुष्प पर कामदेव और रति के शरीर पर खड़े रूप में प्रदर्शित किया गया है। यह मंदिर अपने तांत्रिक स्वरूप के लिए ज्यादा जाना जाता है। मंदिर परिसर में 10 मंदिर अलग-अलग देवी देवताओं को समर्पित हैं। कहते हैं की सच्चे मन से की गयी हर कामना यहाँ पूर्ण होती है .

 

भद्रकाली मंदिर -इटखोरी ,चतरा

चतरा के इटखोरी प्रखंड अंतर्गत भादुली गोंव में भद्रकाली माता का प्रसिद्द मन्दिर है. जिसमे भद्रकाली की प्रतिमा एक ही पत्थर को तराश कर बनायीं गयी है . प्राचीन काल में यह शाक्त सम्प्रदाय का केंद्र था . माँ भद्रकाली की महिमा अपरम्पार है .दूर दूर से लोग यहाँ मन्नतें मांगने आते हैं. मंदिर की स्थापत्य कला से यह पाल युगीन लगती है . यह बौद्ध धर्म का भी प्रमुख स्थल है जहाँ भगवान बुद्ध से जुड़े कई अवशेष आज भी मौजूद हैं .

कौलेश्वरी मंदिर

चतरा जिले में ही हंटरगंज प्रखंड में स्थित कोल्हुआ पहाड़ में माँ कोलेश्वरी का मंदिर है जो पत्थर की दीवारों से घिरा है. माँ कोलेश्वरी की प्रतिमा काले पत्थर से तराशकर बनायीं गयी है. इस पहाड़ पर महाभारत काल के कई महत्वपूर्ण चिन्ह मिले हैं.

देवडी मंदिर

रांची -टाटा मार्ग पर तमाड़ में स्थित देवडी मंदिर में १६ भुजी दुर्गा की प्रतिमा है जो महेंद्र सिंह धोनी के लिए काफी शुभदायक रही है. देवडी मंदिर आज पुरे विश्व में प्रसिद्द हो चूका है. रांची से ६० किलोमीटर दूर देवडी मंदिर को जाग्रत स्थल भी माना जाता है. मंदिर भले ही भव्य रूप ले चूका है लेकिन मुख्य गर्भगृह में देवी को कोई बदलाव स्वीकार्य नही है. मंदिर का निर्माण 770 ई के आसपास हुआ है जहाँ ब्राह्मणों के साथ साथ आदिवासी मुंडा पाहन भी पूजा करते हैं.

योगिनी मंदिर

गोड्डा जिला मुख्यालय से १३ किलोमीटर दूर बरकोप पहाड़ी पर माँ योगिनी का मंदिर है. ऐसी मान्यता है की यहाँ माता सती का दायाँ जांघ गिरा था. मंदिर में प्रतिमा के रूप में जांघ के आकार का शिलाखंड है जिसपर लाल वस्त्र चढ़ाया गया है.

बनासो माता

हजारीबाग जिले के विष्णुगढ़-गोमिया मार्ग मार्ग पर स्थित बनासो माता का मंदिर अवस्थित है. यहाँ काफी दूर -दूर से लोग मन्नते मांगने आते हैं. इस मंदिर को लेकर भी कई कथाएं जुडी है.

महामाया मंदिर

छोटानागपुर के नागवंशी राजा ने लोहरदगा के हापामुनी में महामाया मंदिर की स्थापना की. नवरात्र में सबसे पहले संथाल जनजाति के लोग पूजा करते है. १४५८ ,में महाराज शिवदास कर्ण ने इस मंदिर में विष्णु की प्रतिमा स्थापित की.

 

मंगल -चंडी मंदिर

बोकारो के कसमार में स्थित मंगल-चंडी मंदिर में प्रत्येक मंगलवार को भव्य पूजा की जाती है. इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है और हर मंगलवार को बकरे की बलि दी जाती है जिसका सेवन उसी परिसर में लोग करते हैं.

 

झारखण्ड धाम

रांची के करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर झारखंड धाम को झारखंडी के नाम से भी जाना जाता है, गिरिडीह जिले में स्थित इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसमें कोई छत नही है। मंदिर चारों तरफ से घेरा गया है पर ऊपरी भाग खुला हुआ है। यह अनोखा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। महाशिवरात्रि के दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है। जब दूर-दूर से श्रद्भालु भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं और पूरी रात भव्य मेला लगता है.








 

 







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