खिसियानी बिल्ली खम्बा नोंचे
कवि पंकज प्रियम
कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री के कल के भाषण पर सवाल उठाया कि #गोविंद_रामायण है ही नहीं तो पीएम ने बस जुमला फेंक दिया, बहुत ज्ञानी बनते फिरते हैं आदि-आदि, उनके फ़ेसबुक timline में उसी विचारधारा के लोगों ने खूब हां में हां मिलाकर प्रधानमंत्री का मज़ाक उड़ाया। मेरी आदत लकीर के फकीर बनने की कभी नहीं रही है। ढूंढ़ना शुरू किया तो दो किताबें मिली जिसमे गुरु गोविंद सिंह द्वारा गोविंद रामायण लिखने की चर्चा की गई है। दिनेश कुमार माली कृत त्रेता एक सम्यक मूल के पृष्ठ 20 तथा सरोज बाला कृत रामायण की कहानी विज्ञान की जुबानी के पृष्ठ 29 में साफ लिखा है कि गुरु गोविंद सिंह ने 18 वी सदी में #गोविंद_रामायण की रचना की जिसे 1915 में पंजाबी अनुवाद कर गुरुमुखी में लिखा। बाद में गअब उक्त लेखक ने निश्चय ही पूरी छानबीन और शोध के बाद ही जिक्र किया होगा। मैं लकीर का फकीर नही बनता अगर 2 लेखकों ने वर्षो पहले ही गोविंद रामायण की चर्चा पुख़्ता से अपनी किताब में की है तो हवा में तो बिल्कुल नहीं लिखा होगा कुछ तो शोध और प्रमाण होंगे? तो पीएम ने भी कहीं सुनकर बयान दिया होगा तो इसमें छाती पीटने की क्या बात है? विद्वानों को किसी जाहिल के सुर में सुर मिलाने की वजाय उन तथ्यों को ढूंढकर तब टिप्पणी करनी चाहिए। मैं बिना प्रमाण के कभी टिप्पणी नहीं करता।
दरअसल कुछ लोग अंधविरोध और मोदी से इतनी नफ़रत करते हैं कि भगवान श्री राम के अस्तित्व पर ही सवाल करने लगते हैं। उन्होंने तो रामसेतु पर सवाल खड़ा किया था। रामायण में जिस तरह मूर्खता की चादर ओढ़े धोबी और उसके सुरमे सुर मिलानेवाली जनता ने सीता की पवित्रता पर सवाल खड़ा किया था लेकिन बाद में उन्हें खूब ग्लानि हुई और बारंबार क्षमा माँगी थी उसी श्रेणी में इस तरह के लोग आते हैं। हमारे देश में एक बहुत बड़े वकील और नेता कपिल सिब्बल हैं जो आतंकियो के लिए ,दुष्कर्मियों के लिए मुकदमा लड़ने को टांग उठाये रहते हैं। राम मंदिर बनने पर आत्मदाह करने की बात कई बार कर चुके हैं लेकिन हिम्मत कभी नहीं हुई। आत्मदाह करनेवाला ट्वीट करता है क्या? आग लगा लो किसने रोका है, वैसे भी बोझ हो भारत के लिए,खाओगे देश की और मदद करोगे पाकिस्तान की। एक और नेता ओवैसी है जो बात तो करेगा धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्र और संविधान की लेकिन पार्टी का नाम धर्म विशेष, बात करेगा धर्म विशेष, कोई पीएम, सीएम या गवर्नर इफ़्तार पार्टी करें, मजार में चादर चढ़ाए, हजहाउस का उद्घाटन करे, हजयात्रियों को रवाना करे, ईद बकरीद, मुहर्रम या अन्य किसी भी धार्मिक स्थल या पर्वो में शरीक हो तब लोकतंत्र खतरे में नहीं पड़ता लेकिन मन्दिर का शिलान्यास अलोकतांत्रिक हो जाता है। बात करता है संविधान की लेकिन उसी संविधान के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने जब राम मंदिर निर्माण के पक्ष में निर्णय दिया तो उसे नहीं मानता। यह साफ तौर वे कोर्ट की अवमानना और संविधान का उलंघन है। खुलेआम देश के संविधान को चैलेंज कर कगत है कि 15 मिनट की पुलिस छूट मिले तो दिखा देगा। यह भौंकने की आज़ादी सिर्फ भारत के संविधान ने ही दिया है। दूसरे मुल्कों में जाकर देख ले। 500 वर्षो तक जिस मामले को बेवजह लटका कर रखा गया, जिसके लिए कितनी पीढियां खत्म हो गयी, वह अगर हल हो गया तो इन लोगों को हजम नहीं हो रहा है। जांच में साफ हो चुका है कि धारा 370 और रामजन्म भूमि के फैसले से लोग इतने बैचेन हुए की आम आदमी पार्टी के दफ्तर में दिल्ली दंगे की साजिश रची गयी। इस तरह की अरे अब तो छोड़ो, अब तो हिन्दू मुस्लिम की सियासत बन्द करो। सदियों का मुकदमा खत्म हो गया है अब तो चैन सुकून से रहो। पहले कहते थे कि कोर्ट जो निर्णय देगी वह मान्य होगा लेकिन कोर्ट के निर्णय के बाद से ही पलटी मार गया। अरे जो अपनी जुबान का नहीं वह क्या देश का होगा। हमें ऐसे नेता, तथाकथित अर्बन नक्सली और देश के छुपे गद्दारों की पहचान करनी होगी और फिर वही अखण्ड भारत रामराज्य की स्थापना करनी होगी।
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