समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Thursday, July 29, 2021
922. सावन में दूध
सावन में दूध
गत वर्ष एक अख़बार ने मुहिम शुरू की है कि सावन में सिर्फ दो बूँद से भगवान शिव का अभिषेक करें बाकी दान कर दें। कुछ इसी तरह की दलील pk फ़िल्म में भी दी गयी थी। हिन्दू धर्मों पर प्रहार करने की आज प्रचलन चल गयी है जो जितना सनातनी धर्म को नीचा दिखाएगा वो उतना बड़ा बुद्धिजीवी और धर्मनिरपेक्ष कहलाएगा। दूसरे धर्मों के खिलाफ कुछ बोलने लिखने की इनलोगों की औकात ही नहीं होती। इस तरह मुहिम चलाने से पूर्व सावन में भगवान शिव को दूध से अभिषेक क्यों किया जाता है जरा इसके प्रमाणित शोध की रपट को छाप देते। आप सभी को पता है कि शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने समुद्र मंथन से निकले विष का पान कर लिया था। सावन में भगवान शिव को दूध चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव का दूध से अभिषेक काफी फलदायक होता है, वे जहरीला दूध भी पी जाते हैं। इसी कारण उन्हें दूध चढ़ाया जाता है। भगवान शिव सृष्टि के कल्याण के लिए किसी भी तरह की चीज को अपने अंदर समाहित कर लेते थे, फिर वह चाहे जहर ही क्यों ना हो।
ऐसा कहा जाता है कि सावन-भादो के महीने दूध पीने से लोग बीमार होने लगे यहां तक कि बछड़े भी दूध को पचा नहीं पाते थे तो उसे फिर इतने सारे दूध का किया क्या जाय? दूध को यूँ ही फेंक भी नहीं सकते थे तब किसी ने सलाह दी कि भगवान शिव तो विषहर्ता हैं तो उन्हीं को चढ़ाया जाय। लोगों को ऐसा लगता था कि दूध शिवजी को चढ़ाने से उनका सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं। प्राचीन वैद्यों ने भी बरसात के मौसम में दूध को जहर के रूप परिवर्तित होते प्रमाणित किया है। तो वह तब सारा दूध भगवान शिव को चढ़ा देते थे। आपको बता दें कि आयुर्वेद में ऐसा माना गया है कि मानसून में दूध और दूध से बने उत्पादों का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस मौसम में वात रोग होने की संभावना होती है।, हम वात, पित्त और कफ असंतुलन के कारण अनेक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं।
दरअसल मानसून के मौसम में गर्मी से सर्दी की तरफ अचानक परिवर्तन होता है, जिस कारण हमारे शरीर में वात का स्तर बढ़ता है। यही कारण है कि प्राचीन ग्रंथों में यह बताया गया है कि मानसून के महीने के दौरान भगवान शिव को दूध चढ़ाना चाहिए। इस मौसम में बारिश के कारण घास में कई कीड़े-मकोड़े होने लगते हैं, जो घास के साथ -साथ गाय-भैंसों के पेट में चले जाते हैं। जिस कारण इस मौसम में दूध हमारे लिए सही नहीं होता, वह और भी विषैला हो जाता है। इसलिए इस मौसम में शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है।
सावन के महीने में दूध का अधिक सेवन शरीर के लिए हानिकारक होता है। इस महीने में दूध इतना गरिष्ठ होता है कि इसे पचाना आसान नहीं होता। इसलिए आयुर्वेद में सावन भादो के महीने में दूध,दही,साग इत्यादि का सेवन वर्जित किया गया है। बच्चे और बुजुर्गों को अगर देना भी है तो पानी मिलाकर दूध देने की सलाह दी गयी है। सावन का महीना एक ओर जहां वर्षा और हरियाली लेकर आता है वहीं दूसरी ओर संक्रमण और बीमारियों का भी खतरा बना रहता है। इस दौरान कमजोर इम्यून सिस्टम के कारण शरीर को कई बीमारियां अपना शिकार बना लेती हैं। इसलिए ऐसे मौमस में अपने खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
आयुर्वेद में भी सावन के महीने में कुछ ऐसे विशेष आहार हैं जिनका सेवन वर्जित माना जाता है। यही नहीं हमारे शास्त्रों में भी इस महीने सात्विक भोजन करने की सलाह दी गई है। इसी वजह से इस महीने बहुत से लोग लहसुन, प्याज और मांस-मछली का सेवन छोड़ देते हैं। सावन में दूध का सेवन न करने की सलाह दी जाती है इसी बात को बताने के लिए सावन में शिव जी का दूध से अभिषेक करने की परंपरा शुरू हुई। शिवलिंग की रेडियोएक्टिव क्षमता दूध के विषैले पदार्थों को हर लेती है। वहीं अगर वैज्ञानिक तौर पर देखा जाए तो इस मौसम में दूध पीने से पित्त बढ़ता है।
यही वजह है कि पूरे सावन में लहसुन प्याज, माँस मछ्ली और दूध इत्यादि के सेवन पर रोक लगाई जाती है।
✍पंकज प्रियम
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment