सिपाही थे कलम के जो, अभी भी नाम उनका है।
अटल साहित्य सूरज थे, चमकता काम उनका है।
विषमताओं से रिश्ता था, नहीं पर हार मानी थी-
कलम हथियार कर डाला, सृजन अंज़ाम उनका है।।
लिखा सोज़े वतन जब था, हिली सारी हुकूमत थी।
किया फिर जब्त था उसको, कलम में वो ताकत थी।
भले ही नाम था बदला , नहीं हथियार पर डाली-
बने जो प्रेम धनपत से, मिली उनको मुहब्बत थी।।
©पंकज प्रियम
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