Wednesday, May 18, 2022

940. मुद्दे और सियासत

मुद्दे और सियासत

आज मन्दिर-मस्जिद की चर्चा की बीच कुछ लोग कह रहे हैं की महंगाई, बेरोजगारी की जगह हम इन मुद्दों पर क्यूँ चर्चा कर रहे हैं? सवाल यह कि इन मुद्दों को जिंदा किसने रखा है? देश के लिए हर मुद्दा महत्वपूर्ण है लेकिन समय खुद सबके लिए वक्त का निर्धारण कर लेता है।
जब इतिहास खुद चीख-चीख कर गवाही दे रहा है कि औरंगजेब सहित सभी मुस्लिम आक्रांताओं ने मंदिरों को ध्वस्त कर मस्जिद-मीनार बनाई है तो फिर देश के अमन पसन्द मुसलमान इसको मानते क्यूँ नहीं? गंगा जमुनी तहज़ीब के तहत भाईचारा दिखाते हुए खुद मन्दिरों को एक झटके में अपने कब्जे से मुक्त कर देना चाहिए। सारा विवाद ही खत्म हो जाएगा और जो इसपर सियासत करते हैं उनका मुद्दा ही नहीं रहेगा। फिर चैन से महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर दिनरात घेरते रहिए। महँगाई, बेरोजगारी, गरीबी, बिजली, सड़क जैसे मुद्दे आज़ादी के बाद से ही बने हुए हैं। ऐसा नहीं है कि सरकारों ने इसपर कोई कार्य नहीं किया लेकिन  जब हम खुद ही ईमानदार नहीं हैं तो सिर्फ को कोसने से कुछ होना नहीं है।  आज़ादी के 75 साल बाद भी अगर ये मुद्दे खत्म नहीं हुए हैं तो इसका मतलब की पूर्ववर्ती सभी सरकारें फेल रही है क्योंकि यह सवाल हमेशा से मौजूं हैं। महँगाई और बेरोजगारी पर हर सरकार घिरती रही है। यहाँ आलू-प्याज के बढ़ते मूल्य पर सरकारें गिरा दी गयी है। 75 साल में ये मुद्दे जब खत्म नहीं हुए तो यकीन मानिए अगले 750 वर्षो में भी इसका हल नहीं निकलने वाला है। जो दल आज सवाल उठा रहे हैं उन्होंने 70 सालों तक सत्ता की मलाई खायी है, आज जो सत्ता में है वे भी इन्ही मुद्दों पर सरकार को घेरती रही है लेकिन महंगाई रोक पाने में यह भी नाकाम साबित हो रही है। दरअसल कोई भी दल महँगाई कम करने में दिलचस्पी नहीं लेती। आज अगर सिर्फ डीजल और पेट्रोल से केंद्र और राज्य सरकारें टैक्स हटा लें तो सारी महंगाई एक झटके में कम हो जाएगी लेकिन इसके लिए कोई भी पार्टी तैयार नहीं। हकीकत यही है कि सरकार किसी भी बने इन मुद्दों को कोई खत्म कर ही नहीं सकता। जिस रफ्तार से आबादी बढ़ रही है उसी रफ्तार से प्राकृतिक संसाधन भी खत्म होते  जा रहे हैं। निश्चित ही ये चिंता का विषय है। हमें वैकल्पिक स्रोतों पर ध्यान देना होगा। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अलावे मुफ्त की अन्य सभी योजनाओं पर रोक लगाने की जरुरत है। सिर्फ 10 वर्षो के लिए लागू आरक्षण को आज़ादी के 75 साल बाद भी खत्म नहीं किया जा सका है तो समझिए कि किसी भी सरकार ने आरक्षण वर्ग के विकास हेतु कोई काम नहीं किया है। जब संविधान में आरक्षण 10 वर्षो बाद खत्म करने को स्पष्ट किया गया तो फिर पहले 10 वर्षो में ही उनका सर्वांगीण विकास कर आरक्षण को खत्म क्यूँ नही  कर दिया गया? सारी पार्टियां सिर्फ तुष्टिकरण और वोटबैंक के लिए सामान्य प्रतिभाओं का हनन करती रही और आरक्षण को अबतक जारी रखा है। जब यह खत्म नहीं हो सकता तो फिर महंगाई और बेरोजगारी कैसे खत्म हो सकती है?आज जो लोग चिल्ला रहे हैं कि इन मुद्दों को छोड़कर मन्दिर-मस्जिद पर चर्चा हो रही है तो वे ही बतायें की 75 सालों से चर्चा होने के बाद भी कोई सरकार क्यूँ नहीं इसे खत्म कर सकी है। आज भी मंहगाई, बेरोजगारी , बीमारी क्यूँ सुरसा की तरह मुँह बाए खड़ी है? जो केंद्र सरकार पर सवाल उठा रहे हैं उन दलों की जहाँ उनकी सरकारें हैं वहाँ महँगाई, बेरोजगारी के लिए क्या उपाय किये हैं? उन राज्यो में डीजल-पेट्रोल तो और भी महंगा है! इसी को कहते हैं पर उपदेश कुशल बहुतेरे। आप पहले अपने शाषित राज्यो में कीमतें घटाकर मंहगाई पर अंकुश लगाइए फिर सवाल खड़ा कीजिये तो यकीनन देश की सारी जनता आपके साथ खड़ी होगी। यह हो ही नहीं सकता क्योंकि सत्ता की मलाई हर किसी को चाटनी है। 
अब बात मंदिर- मस्जिद जैसे मुद्दों की, सबको इतिहास पता है कि विदेशी आक्रांताओं ने भारत पर आक्रमण कर सबसे पहले यहाँ के मंदिरों को ध्वस्त कर उसपर मस्जिद-मीनारें बनवाई है। क्योंकि पता था कि भारत पर राज करना है तो सबसे पहले यहाँ की सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों पर हमला करना होगा। आख़िर जितने भी चक्रवर्ती सम्राट हुए उन्होंने मन्दिरों का ही निर्माण क्यूँ करवाया? क्योंकि यहीं से संस्कारो की गंगा निकलती है जो पूरे भारतवर्ष को संस्कृति की फसल लहलहाती है। तोड़ने के बाद औरंगजेब समेत अभी क्रूर शासकों ने खुद अपने कृत्यों का बखान इतिहास और शिलालेखों में कर रखा है। आज भी वो सारे साक्ष्य चीख़ चीख पर गवाही दे रहे हैं। अबतक किसी भी सरकार ने या फिर गंगा जमुनी तहजीब की बात करनेवाले अमनपसंद लोगों ने इन समस्या के हल का रास्ता ढूंढा? सत्य जानते हुए भी नकारते रहे और देश की बहुसंख्यक आबादी की आस्था पर चोट करते रहे। कोई एक व्यक्ति या समूह सामने आया हो कि "विदेशी आक्रमणकारियों ने जो कुकर्म किया है उसे अब सुधारने का वक्त आ गया है आप अपनी आस्था और धरोहर को लीजिये आपकी अमानत है!" नहीं यह तो सम्भव ही नहीं है। यहाँ तो अपने ईष्ट की पूजा के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। राम जन्मभूमि के लिए 500 साल तक कोर्ट की लड़ाई लड़नी पड़ी। धारा 370 हो या फिर अंग्रेजी कानून, राम कृष्ण जन्मभूमि हो या फिर काशी विश्वनाथ का ज्ञानवापी मन्दिर ये ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें जानबूझकर लटकाया, भटकाया और अटकाया गया। सरकारें चाहती तो कब की ये समस्या सुलझ जाती और हम आगे की राह देखते। किसी भी देश के सर्वांगीण विकास में उसकी अपनी सभ्यता, संस्कृति और पहचान जरूरी है। जिसे विदेशी आक्रांताओं के साथ-साथ घर मे छुपे जयचंदो ने कुचलने का काम किया है। अब जबकि बात उठी है तो देश के सभी अमनपसंद लोगों से आग्रह है कि वे स्वयं इन मसलों को खत्म कर तरक्की का रास्ता अख्तियार करें। ओवैसी जैसे औरंगजेब भक्तों की बात पर न आएं और गंगा जमुनी तहज़ीब की मिसाल पेश करें। भारत ही ऐसा मुल्क है जो सबको शरण देता है। वरना पड़ोसी देश पाकिस्तान, बंग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका के हाल देख ही रहे हैं। जो मंदिरों के निर्माण पर सवाल खड़े कर कहते हैं कि मंदिर निर्माण से क्या होगा? उसकी अस्पताल और स्कूल खोले जायें। स्कूल और अस्पताल खोलने से किसने रोका है? आप भी मस्जिद-मज़ार और चर्चों की बजाय स्कूल-अस्पताल ही खोलें किसने मना किया है? भारत मे जितनी जरूरत स्कूल और अस्पताल की है उससे कहीं अधिक आवश्यकता मन्दिर की भी है जो न केवल हमारी सभ्यता-संस्कृति को जीवंत रखते हैं बल्कि लाखों लोगों के रोजगार का माध्यम भी बनते हैं। सिर्फ सिर्फ कृष्ण का ही उदाहरण ले लें तो उनके नाम पर मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना, नंदगांव, द्वारिका समेत कितने शहरों को रोजीरोटी चल रही है। उसी तरह द्वादश ज्योतिर्लिंग के शहर हों या शक्तिपीठ, राम से जुड़े शहर हों या  फिर उनके प्रिय भक्त हनुमान हों सिर्फ उनके नाम पर कई शहर बस गए हैं। वहाँ की पूरी आबादी सिर्फ मन्दिरो की बदौलत टिकी हुई है। हर जाति, वर्ग और धर्म के लोगों को रोजगार मिला हुआ है। आप बनारस, अयोध्या, मथुरा, वृंदावन, विंध्याचल, देवघर, कन्नौज, द्वारका, चारधाम समेत सभी धार्मिक शहरों को देखें तो उनकी अर्थव्यवस्था और वहाँ की रोजीरोटी का मूल आधार मन्दिर ही हैं। जहाँ एक साधारण फूल-बेलपत्र से लेकर पांच सितारा होटल तक के व्यवसाय फलफूल रहे हैं। मंदिरों और हिन्दू पर्व त्यौहारो से सिर्फ हिन्दू परिवारों का ही रोजगार नहीं चलता वल्कि लाखो-करोड़ों मुस्लिम, सिख्ख, पारसियों की रोजीरोटी चलती है।   देवघर में सिर्फ सावन के एक महीने में  इस क्षेत्र के लोग सालोभर का रोजगार कर लेते हैं। इसी तरह प्रत्येक धार्मिक स्थलों की अर्थव्यवस्था का मूल मंदिर ही हैं। अगर सभी देवी-देवताओं के शहरों की गणना करें तो पूरे भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था का मूल आधार आप मंदिरों में पाएंगे। यही वजह है कि मुगलिया आक्रांताओं ने सबसे यहाँ के मंदिरों पर ही आक्रमण कर उसपर कब्जा जमाया। मुगलों के हाथ पूरा भारतवर्ष था वे चाहते तो खाली स्थानों पर मस्जिदों का निर्माण कर सकते थे लेकिन आखिर उन्हें अयोध्या, काशी और मथुरा के मंदिर ही क्यूँ मिले? क्योंकि ये तीनो शहर हमारी आस्था और भारतीय संस्कृति के आधार हैं। राम, कृष्ण और शंकर हमारी आस्था के केन्द्रबिन्दु हैं। मुगलों का पता था कि भारतीयों पर राज करना है तो पहले उनकी आस्था पर चोट करो। नालंदा विश्वविद्यालय में हमारी सभ्यता-संस्कृति से जुड़े हजारों वेद-पुराणों को सिर्फ इसलिए जला दिया गया कि आनेवाली पीढ़ी भारतीय सभ्यता को समझ ही न पाए और वामपंथी लेखकों के मुगलिया गुणगान वाले इतिहास को ही सच समझ बैठे। आज नवनिर्माण का स्वर्णिम काल पुनः लौटा है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन रहा है तो पूरा अवध संवर रहा है। सिर्फ अयोध्या ही नहीं आसपास के गाँव-शहर की पूरी अर्थव्यवस्था बदल रही है। लाखों के रोजगार सृजन हो रहे हैं। सिर्फ नौकरी ही रोजगार नहीं कहलाता। इसी तरह मथुरा, काशी और अन्य शहरों को मुगलिया कब्जे से बाहर निकालकर पुनः संवारने-सजाने की आवश्यकता है। हमारी सभ्यता-संस्कृति और धर्म की रक्षा होगी तो देश का सर्वांगीण विकास होगा। अस्पताल जरूरी है लेकिन हम बजाय रोग बढ़ाने के हमें योग साधना पर बल देना चाहिए ताकि रोग कम हो और किसी को अस्पताल में भर्ती होने की नौबत ही न आये। आइये हमसब मिलकर अपनी पुरातन संस्कृति और भारतीय सभ्यता का पुनर्जागरण करें। 
जय हिंद !
वंदेमातरम
*पंकज प्रियम*

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