Wednesday, June 15, 2022

945.पत्थर की खोज

पत्थर की खोज

इनदिनों हर तरफ पत्थरों की ही चर्चा है। यूँ तो हमारे यहाँ फूलों की वर्षा का रिवाज़ है लेकिन जब ओले पड़ते हैं तो उसे आम बोलचाल की भाषा में पत्थरों की बारिश भी कहते हैं। हालाँकि यहाँ जिस पत्थर की बात चली है उससे हर कोई वाक़िफ़ है।आजकल कश्मीर से लेकर केरल तक पत्थरबाज शांतिपूर्ण ढंग से सड़कों पर पत्थरों की बारिश कर रहे हैं। पहले तो सिर्फ कश्मीर में ही भटके हुए युवा पत्थरों की बारिश करते थे लेकिन झटका तब लगा जब एक पत्थरबाज को ही सेना ने जीप के आगे बांधकर पत्थरों की बारिश से स्वागत कराया। इस तकनीक से सेना के जवान भटके हुए युवाओं की भीड़ से सकुशल बाहर निकल सके। एक बयान को लेकर गत 3 जून को कानपुर में पत्थरबाजों ने अपनी कला का जोरदार प्रदर्शन किया फिर 10 जून को तो एकसाथ 16 राज्यों में पत्थरों की बारिश हुई। कई पुलिसकर्मियों के सर फूटे, जानमाल का भारी नुकसान हुआ। हालाँकि इस शुक्रवार को पत्थर के साथ-साथ पेट्रोल बम और गोलियां भी चल गई। राँची में तो दो की मौत भी हो गयी। इसपर खूब बवाल भी मचा और किसी ने तो यहाँ तक कह दिया कि -"पत्थरों से जान जाती है क्या?" यही तो एक नया टेक्नीक डेवलप हुआ है कि पत्थर कोई हथियार तो है नहीं। संविधान और कानून की नजर में आप निहत्थे हैं और पुलिस इसके लिए गोली तो चलाएगी नहीं। किसी को पत्थर लग भी गया तो उसकी फोरेंसिक जाँच तो हो नहीं सकती! बुलेट का मिलान तो पिस्तौल से हो जाती है लेकिन पत्थर को फूटे सर से मिलान करना उतना आसान नहीं होगा। पत्थर मुफ्त और सुलभ हथियार के रूप में हर गली मोहल्ले में उपलब्ध है और चलाने के लिए भी कोई प्रशिक्षण की जरूरत नहीं। एक बच्चा भी पत्थर उठाकर किसी का सर फोड़ सकता है। बाद में उसे नाबालिक करार देकर कानूनी तौर पर बचा जा सकता है। इसी टेक्निकल खोज ने आज भारत को परेशान कर रखा है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी बाबा ने तो पत्थर के जवाब में बुलडोजर उतार दिया है। शुक्रवार को जो चलाएगा पत्थर, शनिवार को उसके घर चलेगा बुल्डोजर। लंबी और कि लचर कानूनी प्रकिया से आजिज आ चुकी आम जनता को यह बुलडोजर व्यवस्था बहुत भा रही है। कानूनी प्रक्रिया के तहत अगर कार्रवाई शुरू भी होती है तो सजा होते-होते दशकों बीत जाता है। सजा भी मामूली ऐसी की अपराधी को कोई फर्क पड़ता नहीं। 
आप भले पत्थर मार कर पुलिस का सर फोड़ दें, उनकी जान ले लें लेकिन पुलिस ने आत्मरक्षा में भी अगर हल्का बल प्रयोग कर लिया तो फिर पूरी दुनिया में विक्टिव कार्ड खेल सकते हैं कि पुलिस ने  निहत्थे मुल्जिमों पर गोली चला दी। 
यूँ तो पत्थर का प्रयोग पाषाण काल से ही प्रारम्भ हो गया था लेकिन तब मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ही इसका उपयोग करता था। पत्थरों के प्रयोग से आग की खोज हुई और मानव ने भोजन पका कर खाना सीखा। हालाँकि हमारे प्राचीन वेद और ग्रन्थों में बहुत पहले से मनुष्य काफी विकसित हो चुका था। चूंकि भारत में पत्थरों की कोई कमी नहीं है। विशाल पर्वत हो या पठारी चट्टान, नदी नाले या फिर मैदान, पत्थरों से पटा हुआ है अपना देश महान। यहाँ तो कंकर-कंकर में शंकर विद्यमान हैं। हम हैं कि हर पत्थर को बना देते हैं भगवान। वैसे भी हमारे यहाँ प्रचलित कहावत है -"मानो तो देव नहीं तो पत्थर". 
इसलिए सनातन धर्म मे पत्थर सदैव पूजनीय है। हमारे यहाँ तो पत्थरों को रत्न का दर्जा प्राप्त है जिसे हर कोई आभूषणों में इस्तेमाल करता है।उसका दुरूपयोग तो हम कर ही नहीं सकते। इतिहास को जानने समझने के लिए पत्थरो का बड़ा महत्व है तभी तो पहले के लोग शिलालेख की विधि अपनाते थे जो आज भी प्राचीन इतिहास का जीता जागता साक्षी है। पत्थरों से मूर्तियां और मन्दिर बनाये जाते थे तभी तो चाहकर भी विदेशी आक्रांता उनका अस्तित्व मिटा नहीं सके। हमारे आराध्य प्रभु राम ने तो सागर पर पत्थर का पुल बांध दिया था जो आज भी रामसेतु,  एडमब्रिज के नाम से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने तो गोवर्द्धन पर्वत उठाकर न सिर्फ पूरे गोकुल की रक्षा की वल्कि देवराज इंद्र के घमंड को भी चकनाचूर कर दिया। यह सही है कि बगैर पत्थर के कंक्रीट के घर की कल्पना भी नहीं कि जा सकती है। घर हो या सड़क, पुल हो या बांध, बिना पत्थर के कुछ भी सम्भव नहीं है। इसलिए पत्थरों का बड़ा महत्व है लेकिन इसका उपयोग निर्माण में हो किसी के विनाश में नहीं।
  एक मुहावरा है -"ईंट का जवाब पत्थर" लेकिन इसका कतई मतलब नहीं है कि हम पत्थरबाजी करेंगे। दरअसल इसका सही अर्थ है मुँहतोड़ जवाब देना, पत्थर मारना नहीं। पत्थर को जड़ का स्वरूप भी माना गया है लेकिन  'करत-करत अभ्यास के जड़मति हॉट सुजान' भी प्रचलित है। पानी की लगातार गिरती धार और कुआं में रस्सी के घिसने से पत्थर कटने का भी उदाहरण है। यहाँ तो पत्थर से आसमान में भी सुराख कर देने का जज़्बा कायम है। दुष्यंत कुमार यूँ नहीं लिखते- 
"कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता?
जरा एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।

जो पत्थरबाजों के रहनुमा बनकर बोलते हैं कि पत्थर से किसी की जान जाती है क्या? तो उन्हें दुष्यंत कुमार के अंदाज़ में जवाब देना पड़ रहा कि

"कौन कहता है कि पत्थर से जान नहीं जाती?
जरा एक पत्थर तो तबियत से खाकर देखो!"

पत्थरों की मार उनसे पूछिये जिन बेगुनाहों/पुलिस जवानों के सर फटे हैं। राँची में ही पुलिस अधिकारी यूसी झा की पत्थर लगने से मौत हो गयी थी। ऐसे कितने ही जवान, इंसान पत्थरबाजों के पत्थर से घायल होते हैं, उनकी जान तक चली जाती है।  बचपन में मेरा भी सर फूटा है एक पत्थर से, हालाँकि किसी पत्थरबाजी का परिणाम नहीं बल्कि आम पेड़ के नीचे खड़े होने का दण्ड था। मेरे स्कूल का ही एक सहपाठी आम तोड़ रहा था जिसके हाथ से निकला पत्थर आम तो नहीं तोड़ पाया लेकिन मेरे सर को फोड़ डाला। एकबारगी तो लगा जैसे सर पर कोई चट्टान गिर पड़ा और मेरी आँखों के आगे अंधकार छा गया। वह लड़का तो भाग खड़ा हुआ। मेरे साथ मेरी दीदी थी वह मुझे पास के हैंडपंप तक ले गयी और जब सर पर पानी गिराया तो मानो खून की नदी बह निकली। हैंडपंप का पूरा प्लेटफार्म खून से लाल हो गया था। किसी तरह पास के हॉस्पिटल जाकर इलाज़ करवाया तो जान बची। वह एक अनजाने में लगा पत्थर था लेकिन जो पत्थरबाजी होती है उसमें तो इरादतन पूरे बल से पत्थर मारा जाता है अगर वह किसी के सर में लगे तो बचना मुश्किल है। आखिर किसने पत्थर चलाने की शुरुआत की है जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत को चोटिल करता जा रहा है। क्यूँ कुछ लोग अपने छतों पर पत्थर जमा करके रखते हैं?और समय आने पर बेगुनाहों का सर फोड़ते हैं! जरूरत है इसपर ठोस कार्रवाई की। अपराधियों को कड़े दंड की ताकि कोई अन्य सपने में भी पत्थर चलाने की सोचे नहीं।
 

कवि पंकज प्रियम

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