Thursday, October 12, 2023

968. साहित्योदय गीत

साहित्योदय ...साहित्योदय, साहित्योदय--साहित्योदय 

साहित्य, कला और संस्कृति का संसार है

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 

साहित्योदय ...साहित्योदय, साहित्योदय--साहित्योदय 


साहित्य सृजन और मंचन का आधार है 

माटी को मिल जाता सही आकार है .

नई कलम हो या फिर कोई स्थापित हस्ताक्षर 

खिल उठती कलियाँ आकर, बोल पड़े सब पत्थर. 

गंगा की पावन सी धारा, यमुना कल-कल धार है.

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 


भारत माता की चरणों में, करता जो नित वन्दन

विश्वपटल के भाल दमकता, बनके सुगन्धित चन्दन

देशप्रेम की धारा अविरल, बहती जिसके अंदर,

प्रेम का सागर उमड़े हरपल, है जो लफ्ज़ समंदर 

संकल्प हिमालय सा लेकर, करता जग हुँकार है. 

 साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 


उम्मीदों का दीप जलाकर, जग को रोशन कर देता.

नफ़रत के अल्फाज़ मिटाकर, शब्द प्रियम भर देता. 

भारती -भारत को सादर कर, पंकज दल का अर्पण.

संग्राम विचारों का होता पर करते दिल का समर्पण .

अंतर्नाद सुनो सब दिल से, करता तुमसे प्यार है. 

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 


काव्य का सागर ज्वार उठाकर, अश्क रुदाली पीता.

शब्द मुसाफिर बनकर जिसने काल कोरोना जीता. 

जन रामायण ग्रन्थ रचाकर, रामकृपा जो पाता. 

लफ्ज़ मुसाफिर बनकर ये तो माटी को महकाता .

काव्य की धारा कल-कल बहती, अनुशीलन आधार है 

साहित्योदय मंच हमारा लगता एक परिवार है. 

साहित्योदय ...साहित्योदय, साहित्योदय--साहित्योदय 



पंकज प्रियम


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