Sunday, October 29, 2023

971.प्रेम नगरी

ताजमहल को मानते, सभी प्रेम आधार।
लेकिन सब नहीं जानते, क्या है सच्चा प्यार।।

मूरख मानुष मानते, जिसको प्रेम प्रतीक।
लहू सना एक मक़बरा, कैसे इश्क़ अतीक?
शाहजहाँ का प्रेम तो, झूठ खड़ा बाज़ार। 
एक नहीं मुमताज़ थी, बेगम कई हज़ार। 
उसके पहले बाद फिर, 

1 comment:

Admin said...

ये लाइनें हमें ये सोचने पर मजबूर करती हैं कि प्यार सिर्फ़ इमारत या दिखावे में नहीं होता। शाहजहाँ का प्यार भले ही ऐतिहासिक रूप से मशहूर हो, लेकिन उसके पीछे की हकीकत और भी जटिल थी।