समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
ये लाइनें हमें ये सोचने पर मजबूर करती हैं कि प्यार सिर्फ़ इमारत या दिखावे में नहीं होता। शाहजहाँ का प्यार भले ही ऐतिहासिक रूप से मशहूर हो, लेकिन उसके पीछे की हकीकत और भी जटिल थी।
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ये लाइनें हमें ये सोचने पर मजबूर करती हैं कि प्यार सिर्फ़ इमारत या दिखावे में नहीं होता। शाहजहाँ का प्यार भले ही ऐतिहासिक रूप से मशहूर हो, लेकिन उसके पीछे की हकीकत और भी जटिल थी।
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