सत्य सनातन : वास्तविक लोकतंत्र
वास्तविक लोकतंत्र तो हमारे सनातन धर्म में है। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति यहाँ तक कि देवी देवताओं को भी कर्तव्य और अधिकार से जोड़ा गया है। हर कार्य के लिए अलग-अलग देवी देवताओं को अधिकृत किया गया है। वे सभी अपने कर्म का निर्वहन पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करते हैं। कोई 1 ही ईश्वर हर कार्य नहीं कर सकता। यह लोकतंत्र नहीं राजतंत्र है जहाँ 1 राजा मालिक होता है और बाकी सब प्रजा। केवल हमी 1 हैं बाकी कोई नहीं भावना ईश्वरीय नहीं हो सकती। जगतपिता ब्रह्मा हों, जगत के पालनहार श्री हरि हों या फिर भोलेनाथ, कोई किसी के कार्य मे हस्तक्षेप नहीं करते बल्कि एक दूसरे को पूरा सम्मान देते हैं। जैसे त्रिदेवों को सृजन, संचालन और संहार में संतुलन बनाये रखना होता है उसी प्रकार ज्ञान के संचार माँ सरस्वती, बुद्धि विवेक के लिए विघ्नहर्ता गणेश, सुख समृद्धि की देवी लक्ष्मी, प्रेम की देवी राधा, शक्ति का संचार करने हेतु माँ दुर्गा, वर्षा के लिए इंद्र, जल के देवता वरुण, वायुदेव पवन, आग के लिए अग्नि, कोषाध्यक्ष कुबेर, कर्मफल दाता शनिदेव, समस्त जगत को ऊर्जा देने वाले सूर्यदेव, शीतलता प्रदान करने वाले चन्द्र, गुरु बृहस्पति, शिल्पदेव विश्वकर्मा, वैद्य धन्वंतरि, भोजन के लिए माँ अन्नपूर्णा और सबके बहीखाते का हिसाब रखने वाले चित्रगुप्त। यानी जितनी भी मूलभूत आवश्यकता है उसके लिए अलग अलग देव-देवी नियुक्ति हैं। कर्त्तव्य पालन में सर्वशक्तिमान भगवान को भी तकलीफ़ होती है। वे भी हँसते हैं, रोते हैं, कष्ट उठाते हैं, धरती पर सन्तुलन बनाने के लिए विष्णु को मत्स्य, कूर्म, वाराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि अवतार लेना पड़ा। राम और कृष्ण ने कम तकलीफें उठायी लेकिन उन्होंने अपना धर्म व संयम नहीं खोया। उनका जीवन किसी भी प्रबंधन या आज के पाठ्यक्रम से अधिक शिक्षाप्रद है। रामायण और गीता के उपदेशों को पढ़कर ही बड़े बड़े मोटिवेशनल स्पीकर बने हुए हैं। मोटिवेशनल पर विश्व के सर्वाधिक चर्चित पुस्तकों में गीता के उपदेशों की ही नकल है। विष्णु के अवतारों को देखें तो यह मानव विकास का क्रम और मानव जीवन के महत्वपूर्ण अध्याय को दर्शाता है। यही तो प्रैक्टिकल भी है। हर कार्य के लिए किसी एक आदमी को आप नहों रख सकते और न ही एक व्यक्ति हर कार्य की अपेक्षा भी कर सकते हैं। इसी तरह सनातन धर्म मे हरेक कार्य हेतु अलग-अलग व्यक्ति को नियुक्त किया गया है ताकि सबको काम और उचित सम्मान मिल सके। मानव जीवन के हर संस्कार और पर्व त्यौहारों में हर वर्ग के व्यक्ति के भरणपोषण की व्यवस्था की गई है। जो लोग कहते हैं कि मंदिर बनाने से क्या होगा? उन्हें भारत अयोध्या, मथुरा, वृन्दावन, देवघर, उज्जैन, गया, द्वारिका, ऋषिकेश, हरिद्वार सहित उन सभी तीर्थों में जाकर देखना चाहिए जहाँ की पूरी अर्थव्यवस्था मंदिरों पर टिकी है। जिसमें हर धर्म और जाति के लोगों की रोजी रोटी चल रही है।
क्रमशः--/
पंकज प्रियम
1 comment:
आपने सच में बहुत साफ और सोचने पर मजबूर करने वाला नज़रिया रखा है। मैं आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि सनातन में हर शक्ति को अलग ज़िम्मेदारी दी गई है, और यही असली संतुलन बनाता है। ये बात बड़ी खूबसूरती से दिखाती है कि कोई भी काम एक आदमी के बस का नहीं होता।
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