बचपन की साहित्यिक कुलबुलाहट जिम्मेवारियों के बोझ तले दबती रही, बाहर कई आयोजनों में जाता तो वहाँ के प्रोफेशनल और व्यवसायिक माहौल को देखकर मन करता कि एक ऐसा मंच बनाऊं जहाँ प्रोफेशनल नहीं स्वच्छ पारिवारिक माहौल हो। सिर्फ बड़े स्थापित लेखकों को ही नहीं वल्कि गाँव-देहात सुदूरवर्ती गुमनाम और नवोदित कलमकारों को भी सम्मान मिले। 2017 में खयाली पुलाव की तरह दिमाग में पकते साहित्योदय का 2018 में फेसबुक समूह बनाकर शुरू किया। कार्य की व्यस्तता के कारण इसमें समय नहीं दे पा रहा था। देवघर में बाबा बैद्यनाथ साहित्य महोत्सव की परिकल्पना तैयार तो कर ली थी लेकिन न तो लोग थे और न साधन। उसवक्त हमारे साथ सिर्फ सुरेन्द्र कुमार उपाध्याय का मनोबल था कि "कीजिये न भैया जहाँ जितना सहयोग लगेगा हम साथ हैं". पहली बार साझा संग्रह काव्य सागर और शब्द मुसाफ़िर निकालने का मन बनाया। मन में विश्वास तो अदम्य था और मेहनत से कभी डरा ही नहीं। क्या दिन और क्या रात?लगातार 30 से 40 घण्टे तक खड़े रहकर रिपोर्टिंग का अनुभव तो था ही लेकिन आयोजन की व्यवस्था और किसी से मदद के मामले में बहुत पीछे था। राज्यस्तरीय सक्रिय पत्रकारिता के बावजूद कभी किसी से मदद नहीं ली थी। मीडिया में स्क्रिप्टिंग- रिपोर्टिंग के मामले में तो अव्वल था लेकिन मार्केटिंग और विज्ञापन के मामले में फिसड्डी था। ऐसे डर भी था कि पता नहीं लोग जुड़ेंगें या नहीं? पुस्तक प्रकाशन और आयोजन की व्यवस्था कैसे होगी? कहाँ से पैसे आएंगे, कौन मदद करेगा आदि-आदि, उसवक्त पहले लेखक के रुप में हज़ारीबाग के विद्यार्थी बीरेंद्र कुमार ने रजिस्ट्रेशन कराया। उसके बाद थोड़ा बहुत विश्वास जगा। फिर जो जानपहचान के रचनाकार थे उन्हें जोड़ना शुरू किया। लोग धीरे-धीरे जुड़ते गए फिर परिवार बढ़ता गया। बैद्यनाथ महोत्सव को लेकर तैयारी शरू हुई और उसी के निमित गिरिडीह के एक छोटे से कमरे में होली मिलन समारोह के रुप में पहला आयोजन किया जिसमें संजय करुणेश जी, उदय शंकर उपाध्याय, संजय सिन्हा, नवीन मिश्र और कुछ स्थानीय यानी कुल जमा 7-8 लोगों की बीच साहित्योदय का पहली काव्यगोष्ठी हुई। फिर देवघर महोत्सव की तैयारी में लग गए। सबकुछ तय हो चुका था तभी बीच कोरोना महामारी शुरू हो गयी। हमारी सारी व्यवस्था चौपट हो गयी। तब हमने ऑनलाइन माध्यम से सबको जोड़ना शुरू कर दिया। व्हाट्सएप पर तो सब थे ही तो पहले भी व्हाट्सएप पर ऑडियो काव्यगोष्ठी करवा रहा था लेकिन कोरोना काल मे फेसबुक लाइव के जरिये सभी का काव्यपाठ प्रारम्भ कर दिया। कोरोना की वजह से लोग घरों में कैद थे, सारे मंचीय आयोजन बन्द थे तो बड़े-बड़े स्थापित कवि भी घर बैठे थे उन्हें भी फेसबुक के जरिये अपनी रचनाधर्मिता निभाने का अवसर मिल गया। इस दौरान मंच का कोई भी ऐसा स्थापित कवि नहीं था जो साहित्योदय के फेसबुक लाइव में न जुड़ा हो। इसी बीच स्टीमयर्ड शुरु हुआ तो कवि सम्मेलन भी प्रारम्भ कर दिया। इसबीच सबको कैमरे में लाइव प्रस्तुति का प्रशिक्षण भी देता रहा। इसी कोरोना काल के अनुभवों पर एक पुस्तक कोरोना काल भी तैयार हो गयी। हमने 100 पृष्ठों की रंगीन पत्रिका साहित्योदय का प्रकाशन प्रारम्भ किया। जिसका भब्य विमोचन 11 अक्टूबर 2020 को रांची प्रेस क्लब में किया। यह पहला अवसर था जब अपने साहित्योदय परिवार विशेषकर रांची टीम के सदस्यों से पहली मुलाकात हुई। इससे पहले हम सब ऑनलाइन ही मिले थे। 2020 मेरे कार्यक्रमों को देखते हुए झारखण्ड फ़िल्म फेस्टिवल 2020 को ऑनलाइन कार्यक्रम कराने की जिम्मेवारी मुझे मिली जिसमें दुनियाभर के 200 से अधिक बॉलीवुड-हॉलीवुड कलाकारों ने शिरकत की। इसके बाद अलग-अलग शहर, राज्य और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टीमें बनने लगी। सैकड़ो ऑनलाइन आयोजन किया कर हजारों लोगों का काव्यपाठ कराया। सैकड़ो ऑनलाइन प्रतियोगिता और सम्मान समारोह किया। 2021 में जब हालात सुधरने लगे तो फिर आयोजन की तिथि निर्धारित की लेकिन लोग अब भी डरे हुए थे। फिर भी 4 अप्रैल 2021 को देवघर में देशभर से सौ से अधिक साहित्यकार जुटे और बिना किसी प्रायोजक या सहयोग के साहित्योदय का पहला बड़ा भव्य आयोजन हुआ। हालांकि इस कार्यक्रम के तुरंत बाद करुणेश जी, रमन जी समेत कई लोग कोरोनाग्रस्त हो गए। मैं बहुत डर गया था और बाबा बैद्यनाथ से सबकी कुशलता की प्रार्थना करने लगा। देवघर आयोजन में ही अयोध्या जन रामायण की घोषणा कर दी थी। उसके लिए अक्टूबर में अखण्ड काव्यार्चन की तैयारी शुरू किया था करीब एक माह अस्पताल के चक्कर में फंसा रहा। किशोरी और नवजात बच्ची दोनों अस्पताल में थे उसवक्त पूरे साहित्योदय परिवार ने साथ दिया। सभी दुआ-प्रार्थना कर रहे थे। दीवाली के दिन हम घर लौटे तो फिर जन रामायण अखण्ड काव्यार्चन की तैयारी में जुट गए। 5-6 दिसम्बर 2021 को दुनियाभर के 300 से अधिक रचनाकारों से 28 घण्टे अनवरत ऑनलाइन काव्यपाठ करवाकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया जिसमें डॉ बुद्धिनाथ मिश्र, पद्मश्री सुरेन्द्र शर्मा, अरुण जैमिनी जैमिनी, अजय अंजाम, बेबाक़ जौनपुरी, अमित शर्मा, गौरी मिश्रा, देवी, सरला शर्मा समेत सैकड़ों दिग्गज साहित्यकारो की गरिमामय उपस्थिति रही। फिर दर्जनों ऑनलाइन और मंचीय।आयोजन किया। 19-20 नवंबर 2021 को अयोध्या के जानकी महल में भव्य जन रामायण महोत्सव का आयोजन किया जिसमें देशभर के 250 से अधिक लोग शामिल हुए। जिसमें डॉ बुद्धिनाथ मिश्र जी की अध्यक्षता में उदयप्रताप सिंह, पद्मश्री मालिनी अवस्थी, विजया भारती, यतीन्द्र मिश्र, डॉ अखिलेश मिश्र, अजय अंजाम, बेबाक़ जौनपुरी, सरल शर्मा, डॉ शोभा त्रिपाठी, वीणा शर्मा सागर सहित दर्जनों दिग्गज रचनाकार शामिल हुए। यह हमारा परम् सौभाग्य ही था कि रामजन्म भूमि न्यास के महंत कमल नयन दास और हनुमान गढ़ी के महंत राजु दास, अयोध्या में ही कृष्णायण की घोषणा हुई और फिर हम जुट गए वृंदावन की तैयारियों में। लगातार दिनरात अनथक मेहनत और सबके सहयोग से कृष्णायण तैयार हुआ। आयोजन को लेकर भी काफी मैराथन दौड़ लगानी पड़ी जिसमें एक महीने बीमार भी हो गया। राधेरानी की कृपा से वात्सल्य ग्राम स्थित मीरा माधव रिसॉर्ट में भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ। स्वयं साध्वी ऋतम्भरा जी उद्घाटन और समापन में उपस्थित रहीं। उनका आशीर्वाद मिला। इस आयोजन में करीब 300 लोगों की उपस्थिति रही। सबने खूब आनन्द उठाया।
बाबा बैद्यनाथ की पावन भूमि देवघर से प्रारंभ वृहद स्तर पर अंतरराष्ट्रीय महोत्सव की यात्रा रामजन्मभूमि अयोध्या से होते कृष्ण की लीलाभूमि वृंदावन तक अपनी भव्यता के साथ बढ़ती जा रही है। यह हमारा परम् सौभाग्य रहा है कि हमारे हर छोटे-बड़े आयोजन में अभिभावक स्वरूप आदरणीय Buddhinath Mishra जी की उपस्थिति उत्साहवर्धन करती रही।
सुखद बात यह है कि जिस तरह के साहित्यिक परिवार की हमने कल्पना की थी ठीक वैसा ही साहित्योदय है। यहाँ प्रोफेशनल या व्यवसायिक माहौल नहीं वल्कि एक पारिवारिक वातावरण है। जहाँ हर किसी के सुख-दुःख में समान भागीदारी रहती है। बड़े-बड़े प्रतिष्ठित संस्थाओं के कार्यक्रम में मैं स्वयं गया हूँ लेकिन वहाँ की व्यवस्था और व्यवहार पूरी तरह से प्रोफेशनल पाया। अयोध्या आयोजन हो या फिर वृन्दावन, लोगों को आधीरात में भी स्वयं खड़े होकर स्वागत किया और रात 2 बजे आये अतिथियों के लिए भी भोजन की व्यवस्था की। यह सबकुक ईश्वर की कृपा और साहित्योदय परिवार के सहयोग से ही सम्भव हो पा रहा है। इतना सबकुछ मैं कभी नहीं कर पाता अगर किशोरी का साथ नहीं मिलता। ऑफिस से आने के बाद मैं कई दिनों तक रात-रात भर साहित्योदय के कार्य लगा रहता हूँ। घर-परिवार के बहुमूल्य समय की क़ुरबानी से ही यह यात्रा इस मुकाम तक पहुँच सकी है। अन्यथा बीच रास्ते में ही यह सफ़र खत्म हो जाता। साहित्योदय के सुगम संचालन और समीक्षा में की इस यात्रा को सुगम बनाने में कई हमराह बनते गए जिसमें सुरेंद्र उपाध्याय, संजय करुणेश, सुदेष्णा सामंत, अनामिका अनु, रजनी चंदा, सीमा सिन्हा, ज्योत्स्ना झा, गीता चौबे, राकेश तिवारी, राजश्री राज, पुष्पा सहाय, खुशबू बरनवाल, प्रिया शुक्ला, नंदिता माजी शर्मा सहित कई प्रमुख नाम हैं। एक परिवार को चलाने केलिए सबका साथ जरूरी होता है। हमारी सफलता से जलने वालो ने कई बार हमें तोड़ने की कोशिश की लेकिन हमने हमेशा प्रेम और विश्वास के साथ परिवार को जोड़कर रखने में सारा ध्यान लगाया। सफर में कई लोग साथ छोड़ गए तो कई नए हमराह बने लेकिन एकबात स्पष्ट है कि जिनके मन अंशमात्र भी अहम का भाव उठा और संस्था से ऊपर खुद को बड़ा समझने लगे उसे बाबा बैद्यनाथ ने एक बीमारी की तरह साहित्योदय से स्वयं दूर कर दिया।अगले वर्ष शिवसाधना की तपोभूमि ऋषिकेश में शिवायन होगा। यह साहित्योदय यात्रा कभी रुके नहीं, थके नहीं इसके लिए आप सबका निरंतर साथ जरूरी है। क्योंकि साहित्योदय मंच नहीं एक परिवार है।
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