गरीब मर गया
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ज़िदंगी की दुआ मांगती भीड़ से
मज़ार में चादर बेशुमार भर गया।
और दुआएं बाँटता बाहर बैठा
देखो फकीर ठंड से मर गया।
मन्दिर-मस्जिद, चर्च-गुरुद्वारा
इसमे ही बंट गया है जग सारा.
दूध पकवान से जग भर गया
और फकीर भूख से मर गया।
सत्ता सरकार और सियासतें,
बस करती विकास की बातें।
मरने पर बांटती है वो खैरात
मगर कोई निवालों में डर गया,
फिर देखो एक गरीब मर गया।
ठंड और भूख से हुई मौत
कभी सरकार मानती नहीं।
बिन आधार के अब तो वह
किसी को भी जानती नही।
आधार नही तो अनाज नही
कम्बल और आवास नही।
भात-भात कहते 'संतोषी' का स्वर गया.
फिर देखो एक गरीब मर गया।
कम्बल ओढ़ घी सब पीते रहे,
बिन कम्बल लोग ठिठुरते रहे।
टूटी सांस 'चंदो' की और फिर
देखो एक गरीब ठंड से मर गया।
आसमां में जहाज उड़ाने को
उजाड़ा गरीब के आशियाने को
प्लास्टिक की झोपड़ी में
मुआवजे की आस में ही
जीवन 'पोचा' का गुजर गया
ठिठुरते ठंड से वो मर गया।
मौत के बाद देखो सरकारी
मुआवजे का खेल तमाशा
ठंडी हो चुकी लाशों पर कम्बल
और बेजान परिजनों के हाथ
चंद हजार सरकारी बाबू धर गया
ठंड और भूख से जो मर गया।
©पंकज प्रियम"
3 comments:
हृदयस्पर्शी सृजन ।
सुन्दर रचना
सुन्दर
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