Saturday, August 24, 2024

996.महाकाल

 नाथ कहो शिवनाथ कहो तुम, बमबम भोलेशंकर प्यारे।

गङ्गजटाधर चन्द्र सुशोभित, सर्प सजाये तन में सारे।।
हाथ त्रिशूल सुसज्जित डमरू, नन्दी बैल चढ़े त्रिपुरारे।
भक्तन को मझधार उबारत, दुष्टन को खुद नाथ सँहारे।।

पकड़ के हाथ वो सबका, भँवर से पार भी करते,
हमारे नाथ बम भोले,.... सभी से प्यार भी करते।
ज़हर पीकर हलाहल वो, सदाशिव बन गए शंकर-
करे कल्याण वे जग का, वही संहार भी करते।।

हे महाकाल, हे शिवशम्भु
हे भोलेनाथ, हे विश्वगुरू।
जगतनियन्ता, प्रतिपालक
हे बैद्यनाथ,  कैलाशपति।
चिता भस्म हैं धूनी रमाये
सकल चराचर तुम्हीं समाए।

हे गंगाधर, हे शिवशंकर
हे जटाधर, हे कृपानिधि।
नीललोहित,  वामदेव,
हे त्रिपुरांतक, प्रजापति।
विश्व मनोरम तुम्हीं बसाए
सकल.....।

हे महादेव, हे व्योमकेश
हे मृत्युंजय, हे भूतपति।
चारुविक्रम, सूक्ष्मतनु
हे प्रथमाधिप, उमापति।
जगत मनोरथ, मन हरषाए।
सकल....।

हे पिनाकी, हे कपाली
हे कामारी, हे मृगपाणी
भुजंगभूषण, सुरसूदन
हे शिवाप्रिय, भूतपति।
दानव मानव शीश झुकाए।
सकल....।
©पंकज प्रियम

No comments: