Sunday, September 7, 2025

1010. गीतायन

गीतायन परिकल्पना 
पंकज प्रियम 
वरदा वीणा वादिनी, तुझे नवाऊँ शीश।
रूके नहीं यह लेखनी, दे मुझको आशीष।।

मातु पिता आशीष से, पूरण हो मन-काम।
धर्म ध्वजा लहरा सकें, गीतायन के नाम।।

लीलाधर की लीला न्यारी। महाभारत कथा है प्यारी।
गीतायन है ग्रन्थ मनोरम। हर प्रसङ्ग लगता सर्वोत्तम।।
इसकी महिमा बड़ी निराली। भर दे सबकी झोली  खाली।।
गीता का यह ज्ञान सिखाये। सही गलत की राह दिखाये।।

धर्मस्थापन के लिए, रचा महा संग्राम।
कौरव पाण्डव पात्र थे, युद्ध लड़े घनश्याम।। 

धर्म-कर्म की अनुपम गाथा। भावक नवा रहे निज माथा।।
मन में यह विश्वास जगाए। अज्ञ-तिमिर को दूर भगाए।।
गूँजी गीता वाणी न्यारी । जिसे बखाने कृष्ण मुरारी॥
संकट में जब अर्जुन डोला । ज्ञान-कोश तब प्रभु ने खोला॥

कथा कही मुनि व्यास ने, जिसको लिखे गणेश।
है भारत के रूप में,    अद्भुत ग्रन्थ विशेष।।

धर्म हेतु रणभूमि सजाई । नीति-रीति सबकुछ समझाई ॥
कर्मयोग के पाठ पढ़ाये । भक्ति-ज्ञान के मार्ग बढाये.  
सुख-दुख सब की गति बतलाई. वृथासक्ति सब दूर भगाई। 
पावन गीता ग्रन्थ पुनीता । ज्ञान-मोक्ष की मार्ग प्रणीता।


गाथ रची संग्राम पर, हुआ अनोखा काम।
भारत के हर भाग से, जन-मन जुड़े तमाम।।

सरल सहज हिन्दी की भाषा। गढ़ी गयी नूतन परिभाषा।।
शब्द सुमन सुंदर अति पावन। भाव शिल्प लगते मनभावन।
सत्य शांति स्नेहिल रस धारा। है गीतायन गान हमारा।
कृष्ण कंठ वर्णित उपदेशा। मोक्ष मार्ग दर्शित सन्देशा।।


सफल मनोरथ हो रहा, मिला स्वजन-सहयोग।
"गीतायन" के रूप में, यह है नवल प्रयोग।

गीतायन यह दीप अनोखा। जिसने जनमन का विष सोखा ॥
सत्य धर्म सेवा हितकारी। जीवन यज्ञ सफल  सुखकारी।।
जीवन कर्म सुगम फलदाता. सकल मनोरथ भाग्यविधाता.
गीतायन यह ज्ञान अनूपा. मंगल गान अमित स्वर-रूपा. 

गीतायन के ज्ञान से, हुआ सुजाग्रत बोध। 
धर्म, योग, उपदेश से, मिटे सकल अवरोध॥

गीतायन गीत
युग-युग का सन्देश सुनाती, सम्मुख रख मानव जीवन।
सुन लो आज अनोखी गाथा, क्या कहती है गीतायन?

कुरुक्षेत्र का कण-कण साक्षी, युद्ध लड़े नर नारायण।
किसने कब-कब किसको मारा, हारा किससे किसका मन।
जीत गया जो रण में सबसे, फिर वह किससे हार गया।
कौन पराजित हुआ यहाँ पर, कौन किसे ललकार गया।

किसने क्या बलिदान दिया, कब किसने किया परायण.  
सुन लो आज अनोखी गाथा, क्या कहती है गीतायन?

सब कहते सत्ता का झगड़ा, भाई –भाई को मारा.
नारी का अपमान हुआ तो, मिट गया वंश कुरु सारा. 
पांचाली का हँसना वह भी,  मूढ़मगज दुर्योधन पर।
पुत्रमोह में अंधे राजा के शापित वृद्धापन पर।।

कौन यहाँ दोषी बन बैठा, किसको था मौन समर्थन
सुन लो आज अनोखी गाथा, क्या कहती है गीतायन।

धर्म अधर्म के मध्य लडाई, सत्य-असत्य की खाई. 
लोभ, मोह, दम्भ के मोहरे,  चौसर की सब चतुराई।
झूठ, कपट के, छल के आगे, हारी सब सच्चाई।
सभामध्य में चीरहरण पर, किसको थी लज्जा आई? 

भीष्म, द्रोण, कर्ण के मौन ने किया कलंकित आदर्शन?
सुन लो आज अनोखी गाथा, क्या कहती है गीतायन? 

गीतायन महाकाव्य अनुपम, जिसमें गीता-सार लिखा।
रणभूमि रण मध्य खड़े कृष्ण, विराट रूप संसार दिखा।
युग परिवर्तन की चौखट पर, कृष्ण रूप अवतार हुआ।
धर्म स्थापन हित अधर्म के पुतलों का संहार हुआ।।

अद्भुत कथा, महाभारत के सर्जक थे ऋषि द्वैपायन।
सुन लो आज अनोखी गाथा, क्या कहती है गीतायन।।

Tuesday, April 22, 2025

1009.आतंक का मज़हब

वो आये नाम पूछा
धर्म देखा और मार दी गोली
न ब्राह्मण देखा, न क्षत्रिय
न वैश्य और न ही शूद्र,
न अगड़ा, न पिछड़ा
न ऊंच न नीच
म सवर्ण न दलित
न जैन, न भीम 
न एसटी, एससी, ओबीसी
न यादव, न सिंह, न मिश्रा, न वर्मा
न जात देखी, न पात देखी
उनकी नजरों में तो बस हिन्दू थे
जिनके कपार पर ठोक दी गोली
छोड़ा तो सिर्फ उन्हें ही छोड़ा
जिन्होंने उनके कहने पर कलमा पढ़ा। 
आप लड़ते रहो जात-पात पर
उलझे रहो जातिगत जनगणना पर।
किसी को ब्राह्मणों पर मूतना है
किसी को भूरा बाल साफ करना है
किसी को एमवाई का साधन है गणित
कोई अगड़ा, पिछड़ा और दलित।
@पंकज प्रियम

Saturday, April 5, 2025

1008. जयचन्द



जयचन्द

तब भी कुछ जयचंद थे, अब भी हैं जयचंद।
जयचंदों ने ही किया, भारत का पट बंद।।

आक्रान्ता औकात क्या? कर पाते क्या वार?
साथ अगर देते नहीं,         देश छुपे गद्दार।।

सोने की चिड़िया कभी, आर्यावर्त अखण्ड।
खण्ड-खण्ड जिसने किया, देना होगा दण्ड।।

देश छुपे गद्दार को, अब लो सब पहचान।
जो हुआ नहीं देश का, क्या तेरा है जान।।

भारत माता कह रही,  कर लो अब संकल्प।
राष्ट्र बचा लो साथ मिल,  वक्त बचा है अल्प।।

पंकज प्रियम
05.04.2025

Friday, March 14, 2025

1007. रंग से परहेज़

रंगों से परहेज किसे है,         बोलो मेरे यार।
रंग बिना क्या धरती-अम्बर, रंग बिना संसार?
जोगीरा सा रा रा रा

रंगों से ही सजा हुआ है, यहाँ सकल संसार।
रंग बिना बेरंग है कितने, जीवन के दिन चार।
जोगीरा सा रा रा रा

झगड़ा-झंझट काहे करते, काहे करते रार?
मिलकर सारे रंग लगाओ, रंगों का त्यौहार।
जोगीरा सा रा रा रा

पङ्कज प्रियम

Wednesday, March 12, 2025

१००६.. रंग मुहब्बत

मिटाकर रंग नफ़रत का, मुहब्बत रंग तुम भर लो।

भुलाकर दुश्मनी दिल में, नई उमंग तुम भर लो।
नहीं शिकवे गिले कोई, न कोई द्वेष हो मन में-
मनाकर प्रेम की होली, सभी को संग तुम कर लो।।
©पंकज प्रियम

Friday, February 7, 2025

1005.ऋतुराज बसन्त

ऋतुराज बसन्त
धरती ने शृंगार किया हो चले सुगन्धित वन उपवन। 
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

फूल खिले हैं बागों में और वसुधा ओढ़ी पीली चुनर।
कुहू-कुहू कोयलिया गाये,   गुंजारित कर रहे भ्रमर।
बौराये मकरंद की ख़ातिर, फिरते कलियों के आंगन।
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

दुल्हन आज बनी है अवनी, अम्बर आज बना है कन्त।
प्रकृति ने बारात सजायी, आया जो ऋतुराज बसन्त।
फूलों ने जो खुशबू बिखेरी, महक उठा है आज चमन।
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

नवकोंपल से शोभित तरुवर, हर्षित धरती और गगन।
होली सा खुमार चढ़ा है,         नाचते गाते सारे मगन
सुर्ख दहकते अंगारों से...    फूल पलाश भरे कानन।
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

पंकज प्रियम कवि पंकज प्रियम