Saturday, April 5, 2025

1008. जयचन्द



जयचन्द

तब भी कुछ जयचंद थे, अब भी हैं जयचंद।
जयचंदों ने ही किया, भारत का पट बंद।।

आक्रान्ता औकात क्या? कर पाते क्या वार?
साथ अगर देते नहीं,         देश छुपे गद्दार।।

सोने की चिड़िया कभी, आर्यावर्त अखण्ड।
खण्ड-खण्ड जिसने किया, देना होगा दण्ड।।

देश छुपे गद्दार को, अब लो सब पहचान।
जो हुआ नहीं देश का, क्या तेरा है जान।।

भारत माता कह रही,  कर लो अब संकल्प।
राष्ट्र बचा लो साथ मिल,  वक्त बचा है अल्प।।

पंकज प्रियम
05.04.2025

Friday, March 14, 2025

1007. रंग से परहेज़

रंगों से परहेज किसे है,         बोलो मेरे यार।
रंग बिना क्या धरती-अम्बर, रंग बिना संसार?
जोगीरा सा रा रा रा

रंगों से ही सजा हुआ है, यहाँ सकल संसार।
रंग बिना बेरंग है कितने, जीवन के दिन चार।
जोगीरा सा रा रा रा

झगड़ा-झंझट काहे करते, काहे करते रार?
मिलकर सारे रंग लगाओ, रंगों का त्यौहार।
जोगीरा सा रा रा रा

पङ्कज प्रियम

Wednesday, March 12, 2025

१००६.. रंग मुहब्बत

मिटाकर रंग नफ़रत का, मुहब्बत रंग तुम भर लो।

भुलाकर दुश्मनी दिल में, नई उमंग तुम भर लो।
नहीं शिकवे गिले कोई, न कोई द्वेष हो मन में-
मनाकर प्रेम की होली, सभी को संग तुम कर लो।।
©पंकज प्रियम

Friday, February 7, 2025

1005.ऋतुराज बसन्त

ऋतुराज बसन्त
धरती ने शृंगार किया हो चले सुगन्धित वन उपवन। 
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

फूल खिले हैं बागों में और वसुधा ओढ़ी पीली चुनर।
कुहू-कुहू कोयलिया गाये,   गुंजारित कर रहे भ्रमर।
बौराये मकरंद की ख़ातिर, फिरते कलियों के आंगन।
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

दुल्हन आज बनी है अवनी, अम्बर आज बना है कन्त।
प्रकृति ने बारात सजायी, आया जो ऋतुराज बसन्त।
फूलों ने जो खुशबू बिखेरी, महक उठा है आज चमन।
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

नवकोंपल से शोभित तरुवर, हर्षित धरती और गगन।
होली सा खुमार चढ़ा है,         नाचते गाते सारे मगन
सुर्ख दहकते अंगारों से...    फूल पलाश भरे कानन।
बासंती जो चली हवा, तो, झूम उठा सारा तन-मन।

पंकज प्रियम कवि पंकज प्रियम