Wednesday, March 12, 2025

१००६.. रंग मुहब्बत

मिटाकर रंग नफ़रत का, मुहब्बत रंग तुम भर लो।

भुलाकर दुश्मनी दिल में, नई उमंग तुम भर लो।
नहीं शिकवे गिले कोई, न कोई द्वेष हो मन में-
मनाकर प्रेम की होली, सभी को संग तुम कर लो।।
©पंकज प्रियम

1 comment:

Admin said...

आपकी कविता में जो बात कही गई है की नफ़रत मिटाकर मोहब्बत का रंग भरने की, वह बहुत खूबसूरत है। यह हमें सिखाती है कि अगर हम अपने मन से गिले-शिकवे और दुश्मनी निकाल दें, तो ज़िंदगी और भी रंगीन हो जाएगी।