वो आये नाम पूछा
धर्म देखा और मार दी गोली
न ब्राह्मण देखा, न क्षत्रिय
न वैश्य और न ही शूद्र,
न अगड़ा, न पिछड़ा
न ऊंच न नीच
म सवर्ण न दलित
न जैन, न भीम
न एसटी, एससी, ओबीसी
न यादव, न सिंह, न मिश्रा, न वर्मा
न जात देखी, न पात देखी
उनकी नजरों में तो बस हिन्दू थे
जिनके कपार पर ठोक दी गोली
छोड़ा तो सिर्फ उन्हें ही छोड़ा
जिन्होंने उनके कहने पर कलमा पढ़ा।
आप लड़ते रहो जात-पात पर
उलझे रहो जातिगत जनगणना पर।
किसी को ब्राह्मणों पर मूतना है
किसी को भूरा बाल साफ करना है
किसी को एमवाई का साधन है गणित
कोई अगड़ा, पिछड़ा और दलित।
1 comment:
हम रोज जात-पात, ब्राह्मण-दलित, अगड़ा-पिछड़ा में उलझे रहते हैं, और उधर जो मारने आए थे, उन्हें तो बस एक ही चीज़ दिखी, हमारा धर्म। न नाम देखा, न गोत्र, न रिजर्वेशन का स्टेटस। गोली मारी तो सिर्फ “हिंदू” देखकर। सोच के डर लगता है कि हम आपस में ही बंटे पड़े हैं, और जो दुश्मन है, वो हम सबको एक मानकर खत्म करने पर तुला है।
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