गाँधी तेरे देश में
ऐ काश! कि तुम कोई दलित होते,
ऐ काश! कि तुम अल्पसंख्यक होते।
तेरे घर लगता मजमा रोनेवालों का।
चोरी करते जो तबरेजों सा मर जाते,
तभी सेक्युलर रूदाली आँसू बहाते।
जलता कैंडल हर शहर गली चौराहे,
यू एन तक सब करते बस चर्चा तेरी,
नेता अफसर सब दौड़े-दौड़े आते।
बंगाल की धरती रक्तरंजित क्यूँ है?
विरोध का स्वर इतना किंचित क्यूँ है?
बहा रही लहू ममता की सरकार,
चुप क्यूँ बैठा दिल्ली का सरदार?
गाँधी तेरे देश में इस नए परिवेश में
भेड़िया छुपा बैठा खादी के वेश में।
आँसू बहते सिर्फ चुनिंदा मौतों पर
कुछ भी नहीं है बदला है तेरे देश में।
वोटों की सियासत केवल चमकाते,
तुम जिसके लिए आँसू थे छलकाते।
©पंकज प्रियम
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