कैसे करूँ अब यहाँ जयजयकार,
रोज होता मासूमों का बलात्कार।
जाति मजहब की होती सियासत-
रोज हो रही है मानवता शर्मसार।।
कैसी ये आग लगी, कैसा है अंगार,
फिजाओं में मची है कैसी हाहाकार।
फूलों को तोड़कर फेंक दिया सबने-
कलियों को भी मसल रहे बारम्बार।।
सत्ता-कुर्सी सियासत सब मक्कार,
धर्म का चश्मा चढ़ाए,उसे धिक्कार।
सिर्फ सियासी रोटी सेंका है सबने-
हो हल्ले में दबी मासूम की चीत्कार।।
©पंकज प्रियम
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