प्याज
कुण्डली
सर पे चढ़कर देख लो, बनता वो सरताज़।
बिन काटे आँसू बहे, कीमत सुन के प्याज़।
कीमत सुन के प्याज़, यहाँ सर है चकराता।
लाता पौवा आज, किलो भर था जो खाता।
कहे प्रियम कविराय, नहीं लाओ इसको घर।
खुद सड़ कर के ख़ाक! चढ़ेगा वो तेरे सर।।
©पंकज प्रियम
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
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Wednesday, December 11, 2019
746. प्याज
745. बेटी
बेटी
बेटी हर दिन मर रही, मातु-पिता लाचार।
होता सब दिन अब यहाँ, हर जगह दुराचार ।।
हर जगह दुराचार, यहाँ मन अब घबराता।
तुझको रही पुकार, छुपे हो कहाँ विधाता।।
कहे प्रियम कविराय, क्यूँ नोचते हो बोटी?
देखो क्या है हाल, अभी डरती हर बेटी।
©पंकज प्रियम
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