Wednesday, December 11, 2019

745. बेटी

बेटी
बेटी हर दिन मर रही, मातु-पिता लाचार।
होता सब दिन अब यहाँ, हर जगह दुराचार ।।
हर जगह दुराचार, यहाँ मन अब घबराता।
तुझको रही पुकार, छुपे हो कहाँ विधाता।।
कहे प्रियम कविराय, क्यूँ नोचते हो बोटी?
देखो क्या है हाल, अभी डरती हर बेटी।
©पंकज प्रियम

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