समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
सुबह की धूप जैसी है, जवानी रूप जैसी है, तेरी सादगी महकती, सुगन्धित धूप जैसी है। नहीं कोई शिकायत है, नहीं कोई बगावत है- तेरी चाहत बड़ी सच्ची, रसीली सूप जैसी है।।
© पंकज प्रियम