Thursday, December 17, 2020

897.हरहरो रे

हरहरो रे -----
मकर संक्राति को प्रातः स्नान की महिमा तो सर्वव्यापी है लेकिन इसको लेकर हमारे यहाँ एक अलग की कहानी किसी ने बुन दी है. हाड़ कंपाती सर्दी में भला किसी को प्रातः 4 बजे उठकर नहाने को कहे तो कौन सुने? वह भी तब जब गाँव में गीजर न हो और कुँए के पानी से नहाना .पाप  और पुण्य से बच्चो को भला क्या लेना देना ? तो उनके लिए पुरखो ने एक नया बहाना बना दिया होगा कि मकर संक्राति के दिन जो भोर मुँह अँधेरे उठकर नहाता है उसे गोरी बीवी या सुंदर दूल्हा मिलता है . फिर सोचना क्या ? लड़के -लड़कियां सुंदर पत्नी और वर  लिए भर -भर बाल्टी पानी सर पर उलेढ़ लेते थे. सोचिये कुँवें का ठंडा पानी और पूरी बाल्टी सर पर उलेढ्ना कोई सजा से कम है क्या ? लेकिन रंगीन हसींन सपनों की गरम रेनकोट पहने हुए खाक ठंड लगती है! हाँ ठंड को दूर करने के लिए सभी जोर -जोर से चिल्लाते थे -हरहरो रे -सरसरो रे .आज तक इन शब्दों का अर्थ नहीं समझ पाया लेकिन मकर संक्राति के दिन नहाते वक्त ये पंक्तिया स्वतः निकल आती है. पानी में तिल डालकर स्नान करने की परम्परा रही है .काले तिल वाले पानी से स्नान कर गोरी बीवी और वर का सपना लिए लड़के -लड़कियां बड़े जोश से स्नान कर लेते थे. स्नान से पूर्व आसपास गिरे हुए सूखे पत्ते और लकड़ियों को जमा कर रखते और नहाते ही उसमे आग लगाकर तापने का अलग ही आनंद था. अब कितने लोगों को गोरी बीवी और सुंदर वर मिला ये तो शोध का विषय है लेकिन जो भी हो बचपन के दिन वो बड़े हसीन थे. अब तो मकर संक्राति पर बहुत कम गोंव जाना होता है और शहर में प्रातः स्नान  करने की बस परम्परा निभाई जाती है. ----------------------------------
--पंकज प्रियम