Sunday, April 11, 2021

908. फिर से कोरोना आया है

फिर से कोरोना आया है,
पहले से ज्यादा छाया है।
बच्चे बूढ़े और जवां-
सबका मन घबराया है।। 

भूल चले थे जिसको हम,
लौट के आये सारे गम।।
कौन बचेगा कहना नहीं-
सबपर मौत का साया है।
फिर से -/

सरकार ने सब जो छोड़ा है,
हमने भी नियम को तोड़ा है।
दो ग़ज़ दूरी भूले और-
चेहरे से मास्क हटाया है।
फिर से-/

जनसैलाब चुनावों में
सन्नाटा बस गाँवों में। 
देख सियासत का चेहरा-
सबका मन भरमाया है।
फिर से-/

इतिहास तो साक्षी बनती रही,
लाशों पे सियासत सजती रही। 
वोट की ख़ातिर भीड़ जुटा
सबने खतरा बढ़ाया है। 
फिर से-/

नेता तो चालाक मगर,
नहीं लागे क्यूँ तुझको डर।
रेलम पेलम भीड़ में जा-
काल को घर पे बुलाया है। 
फिर से --/

बचना है तो समझो अभी, 
मौका मिलेगा फिर न कभी।
सबको बचाओ और बचो-
प्रियम संदेशा लाया है।।
©पंकज प्रियम