समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
चुनावी चकल्लस-2
टिकट की आस में नेता, यहाँ पल-पल बदलता है। टिकट जो कट गयी उसकी, नया वो दल बदलता है। न कोई राज रहता है,.........न कोई नीति रहती है, सियासी खेल में नेता,......जगह हरपल बदलता है। ©पंकज प्रियम 4.4.2019
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