मुहब्बत मुझे ना कभी आजमाना
तुम्हारे लिए...छोड़ दूँगा जमाना।
अभी तो मुहब्बत शुरू ही हुआ है
कहो तो अभी छोड़ दूँगा जमाना।
तुझे देखकर ये, मुझे क्या हुआ है
अभी तो यहीं था अभी क्या हुआ है
निगाहों से ऐसे न मुझको पिलाना।
तुम्हारे लिए......छोड़ दूँगा जमाना।
तुम्हारी निगाहें, बड़ी क़ातिलाना
लगाती है दिल पे ये सीधे निशाना
निगाहों के ख़ंजर न मुझपे चलाना।
तुम्हारे लिए.....छोड़ दूँगा जमाना।
अभी तो सफ़र ये शुरू ही हुआ है
नज़र का नज़र पे नया कारवां है।
अकेले डगर में..नहीं छोड़ जाना,
तुम्हारे लिए....छोड़ दूँगा जमाना।
©पंकज प्रियम
08/04/2019
1 comment:
बहुत खूब..... ,सादर नमस्कार
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