पढ़ी किताबों में हमने, जिनकी अमर कहानी थी
हल्दीघाटी की माटी में, बहती वीर बलिदानी थी।
मुगलों के आगे जब सबने, था रण छोड़ दिया।
अकेले महाराणा ने तब जवाब मुँह तोड़ दिया।
आज़ादी का दीवाना, माटी-मुल्क मतवाला था
हवा से बातें करता चेतक, लहू पीता भाला था।
शौर्य-पराक्रम के आगे, अकबर भी घबराता था
वो प्रताप रणकौशल से, महाराणा कहलाता था।
सबकुछ खोकर भी उसने, कभी हार न मानी थी।
घास की रोटी खाकर भी, लड़ी युद्ध मैदानी थी।
©पंकज प्रियम
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