गद्दारों की टोली
निकल पड़ी फिर से जयचंदो की टोली है
सुनो इनकी कैसी ये देशविरोधी बोली है।
पाक की मेहबूबा रोई,अब्दुल्ला भन्नाया है
आतंकी आका को अपना दर्द सुनाया है।
घर में रहके जो दुश्मन की ख़ातिर रोता है
ऐसे नमक हरामों का कहाँ जमीर होता है।
सुनो दिल्ली वालों! तूने क्यूँ मौन साधा है?
आतंकवाद मिटाने का किया तूने वादा है।
देशविरोधी नारों में खुद को जिसने ढाला है
हुई हिम्मत कैसे इनकी, क्यूँ इनको पाला है?
कुचल डालो फन आस्तीन में छुपे साँपों का
बहुत भर गया है घड़ा अब इनके पापों का।
देना होगा मुँहतोड़ जवाब, ऐसे मक्कारों को
दुश्मन से पहले मारो, देश में छुपे गद्दारों को।
इनके ही शह पर चलती सरहद पर गोली है
आतंकी चंदो से भरती इनकी सदा झोली है।
©पंकज प्रियम
09/04/2019
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