समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
शारदे माता सरस्वती, चरण नवाऊं शीश।
भारती वीणावादिनी, दे मुझको आशीष।
रुके न मेरी लेखनी, दो इतना वरदान।
सबकी पीड़ा हर सकूँ, करूँ जगत कल्याण।
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