Tuesday, October 26, 2021

930. दर्द अब दिखता नहीं

*दर्द अब लिखता नहीं*

क्या लिखूँ कैसे लिखूँ मैं? दर्द अब लिखता नहीं,
कष्ट कितना हो रहा है,   अब कहीं दिखता नहीं।

आयी थी मुस्कान लेकर,     मौत से तू लड़ रही,
दूध के बदले शिरा में,       औषधि ही चढ़ रही।

गोद का अरमान होगा, बेड की किस्मत मिली,
दूर है अपनों से हरपल, नर्स की हिम्मत मिली। 

ज़िंदगी की जंग मुश्किल, जीतना तुझको मगर,
रोक दूँगा राह सबकी,       मौत भी आये अगर।

सांस तुम लेती रहो बस,      मैं हवा देता रहूँगा,
मौत से लड़ती रहो तुम,       मैं दवा देता रहूँगा।

जंग को तुम जीतकर अब, संग अपने घर चलो।
दीप से जगमग जहाँ फिर, रंग होली कर चलो।

हे जगत जननी भवानी,   क्या दया आती नहीं?
जो हुई नवरात्र में फिर,    क्या तुझे भाती नहीं? 

अब सुनो विनती हमारी,  प्रेम करुणा धार दो।
हम सभी संतान तेरी,      माँ भवानी प्यार दो।
©पंकज प्रियम
Day17@hospital

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