राम मंदिर: भारतीय आस्था का प्रतीक
पंकज प्रियम
22 जनवरी 2024 का दिन इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित हो गया है जिसदिन प्रभु श्री राम अपनी जन्मभूमि पर विराजमान हो गए। राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जिस तरह पूरे विश्व में एक भक्तिमय भाव उमड़ा वह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। क्या गांव और क्या शहर? बच्चे-बूढ़े, नर-नारी हर कोई रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से उत्साहित है और देशभर में होली-दीवाली सा माहौल है। घर-घर दीप जले और चहुँओर मंगल गीत गाये जा रहे हैं। गली-चौक चौराहे राम पताका से सजे हुए हैं और दशो दिशाओं में बस रामनाम की गूँज है। हर किसी का मन आह्लादित है और पूरी अयोध्या दुल्हन सी सजी हुई है। त्रेतायुग में जब प्रभु श्रीराम वनवास से घर लौटे होंगे तब क्या दृश्य रहा होगा वह आज जीवंत हो गया है। इस सुनहरे युग का साक्षी बनना हम सभी के लिए गौरवशाली है। यह उत्सव का क्षण पाना एक स्वप्न के पूर्ण होने के समान ही है जिसके लिए हजारों लाखों सनातनियों ने अपने प्राणों की आहुति दी है , पिछले पांच सौ वर्षों ले कठिन संघर्ष के बाद यह सुनहरा दिन आया है।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने त्रेतायुग के अपने जीवनकाल में तो सिर्फ 14 वर्षों का वनवास काटा था लेकिन इस कलियुग में अपनी जन्मभूमि पर लौटने हेतु 500 वर्ष की प्रतीक्षा करनी पड़ी। यूँ तो प्रभु श्री राम इस धरती के कण-कण में व्याप्त हैं। अयोध्या की पावन भूमि प्रभु श्रीराम को उनके जन्मस्थान पर विराजमान होने के लिए वर्षों तक तड़पती रही। एक लंबा संघर्ष चलता रहा, देश के तमाम रामभक्त इस दिन के लिए लड़ते रहे और लाखों लोग धर्म स्थापना के इस युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हो गए। आज निश्चित ही उनकी आत्मा को शांति मिली होगी जब श्रीरामलला अपने जन्मस्थान पर बने भव्य मंदिर में विराजमान हुए हैं। यह भारत देश ही था जहाँ प्रभु श्रीराम को भी अदालत में अपने जन्म का सबूत पेश करना पड़ा है। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता था कि विधर्मियों की तो बात छोड़िए हिन्दू धर्म के लोगों ने ही रामजन्मभूमि की लड़ाई में भगवान राम की खिलाफत की। लोगों ने राम के होने पर भी सवाल उठाया, कोर्ट ने राम के वंशज पर सवाल खड़े किया। यहाँ तक कि राम को काल्पनिक पात्र बता दिया गया लेकिन प्रभु राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं वे इतने वर्षों तक धैर्य धारण करते रहे और सबकुछ देखते रहे। वर्षो तक रामलला एक टेंट में रहे, गर्मी, बरसात हर मौसम में इसी हाल में उनकी पूजा होती रही। टेंट फटने पर कपड़ा बदलने हेतु कोर्ट से अनुमति लेनी पड़ती थी। जगत के पालनहार विष्णु के अवतार और अयोध्या के राजा राम को एक वस्त्र के लिए भी कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की जरूरत पड़ती थी। तुष्टिकरण की राजनीति और ब्रिटिश साम्राज्य के कानूनों के कारण श्रीरामलला को इतने कष्ट सहने पड़े। मानो अदालतें राम से ऊपर हो गयी थी, सरकारें प्रभु राम से बढ़कर हो गयी थी। इतने वर्षों तक यह मामला लटका नहीं, जानबूझकर लटकाया गया ताकि एक समुदाय विशेष का वोटबैंक खराब न हो जाये। आज़ादी के बाद की सरकारें चाहती तो आराम से इस मामले का हल निकाल कर बहुत पहले राम मंदिर का निर्माण कर लेती लेकिन किसी ने यह काम नहीं किया उल्टे मुलायम सरकार ने निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां बरसा दी। इस मामले में मुस्लिम समुदाय की भी भूमिका नकारात्मक ही रही। यह सर्वव्यापी मान्यता और करोडों रामभक्तों की आस्था थी कि अयोध्या राम की जन्मभूमि है ऐसे में उन्हें सहर्ष यह भूमि राम मंदिर हेतु दे देना चाहिए था। यह तो ऐतिहासिक तथ्य है कि बाबर के सिपहसालार मीर बांकी ने पुराने राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाया था। आखिर बाबर का अयोध्या में क्या काम? वहाँ क्या उसका जन्म हुआ था जो एक विदेशी लुटेरे के नाम पर मस्जिद बना दी गई?
पौराणिक मान्यता है कि अयोध्या को सतयुग में वैवस्वत मनु ने बनवाया था। वाल्मीकि रामायण के अनुसार इसी नगरी में चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के घर भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। वनवास से लौटने के बाद वर्षों तक अयोध्या में राम राज चला। इसके बाद श्री राम स्वयं सरयू नदी के गुप्तार घाट में जल समाधि लेकर बैकुंठ लोक सिधार गए। कई साल बाद उज्जयिनी के राजा विक्रमादित्य इस धरती पर आखेट करने के लिए पहुंचे। उन्होंने पृथ्वी पर कुछ चमत्कारी घटना घटते देखी। फिर उन्होंने उस जगह के इतिहास के बारे में जाना और उस पर शोध किया। तब उन्हें यहां श्री राम की उपस्थिति के प्रमाण मिले। इसके बाद उन्होंने काले कसौटी पत्थरों का उपयोग करके 84 स्तंभों वाला एक मंदिर बनवाया। इसके बाद में कई राजा राज्यों के बीच आये और गये। भारत में मुगल शासन की शुरुआत 14वीं शताब्दी में हुई। सन 1525 में मुगल सम्राट बाबर के सिपहसालार मीर बांकी ने राम जन्मभूमि पर प्राचीन मंदिर को नष्ट कर दिया और उसके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया।
ऐतिहासिक अभिलेख और यात्रियों के विवरण में अयोध्या में जन्मभूमि के आसपास विकसित कहानियों का जिक्र है अंग्रेज यात्री विलियम फिंच ने 1611 में अपनी अयोध्या यात्रा के दौरान खंडहरों को दर्ज किया लेकिन किसी मस्जिद का कोई उल्लेख नहीं किया। जेसुइट मिशनरी जोसेफ टिफेनथेलर ने 18वीं शताब्दी में अयोध्या का दौरा करते हुए भगवान राम से जुड़े एक किले के विध्वंस और उसके स्थान पर एक मस्जिद के निर्माण के बारे में लिखा था। 1810 में फ्रांसिस बुकानन सहित बाद के आगंतुकों ने राम को समर्पित एक मंदिर के अस्तित्व पर ध्यान दिया, जिसे मस्जिद द्वारा बदल दिया गया था। बाबरी मस्जिद पर शिलालेखों की प्रामाणिकता को लेकर विवाद है, दावा किया जा रहा है कि उन्हें बहुत बाद में जोड़ा गया था, जिससे बाबर के युग के साथ मस्जिद के वास्तविक ऐतिहासिक संबंध पर सवाल उठते हैं
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 1978 और 2003 में की गई दो पुरातात्विक खुदाई में इस बात के सबूत मिले कि इस स्थान पर हिंदू मंदिर के अवशेष मौजूद थे। पुरातत्वविद् के के मुहम्मद ने कई वामपंथी विचारधारा वाले इतिहासकारों पर निष्कर्षों को कमजोर करने का आरोप लगाया। अयोध्या जमीन विवाद मामला देश के सबसे लंबे चलने वाले केस में से एक रहा।
राम मंदिर विवाद के इतिहास में 5 अगस्त 2020 का दिन सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया। 1528 से लेकर 2020 तक तकरीबन 5 सौ वर्षो में कई ऐतिहासिक मोड़ आये और कुछ मील के पत्थर भी पार हुए। खास तौर से 9 नवंबर 2019 का दिन जब 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने ऐतिहासिक फैसले को सुनाया।
राम मंदिर की संघर्ष गाथा
साल 1528: विदेशी आक्रांता मुगल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने विवादित स्थल पर एक मस्जिद का निर्माण कराया। इसे लेकर हिंदू समुदाय ने दावा किया कि यह जगह भगवान राम की जन्मभूमि है और यहां एक प्राचीन मंदिर था। हिंदू पक्ष के मुताबिक मुख्य गुंबद के नीचे ही भगवान राम का जन्मस्थान था। बाबरी मस्जिद में तीन गुंबदें थीं।
मन्दिर मस्जिद को लेकर 1853 में इस जगह के आसपास पहली बार दंगे हुए।
1859 में अंग्रेजी प्रशासन ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगाकर घेराबंदी कर दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर और हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई।
असली विवाद शुरू हुआ 23 दिसंबर 1949 को, जब भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि किसी ने रात में चुपचाप मूर्तियां वहां रख दीं। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मैजिस्ट्रेट के के नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई। सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया।
साल 1950 में फैजाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गई। इसमें एक में रामलला की पूजा की इजाजत और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे रहने की इजाजत मांगी गई। 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने तीसरी अर्जी दाखिल की।
साल 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अर्जी दाखिल कर विवादित जगह के पजेशन और मूर्तियां हटाने की मांग की।
साल 1984 में विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने के लिए 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने एक कमिटी गठित की।
साल 1986 में यूसी पांडे की याचिका पर फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया।
6 दिसंबर 1992 को विश्वहिंदू परिषद और शिवसेना समेत दूसरे हिंदू संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया। देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़के गए, जिनमें 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
साल 2002 में हिंदू कार्यकर्ताओं को लेकर जा रही ट्रेन में गोधरा में आग लगा दी गई, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई। इसकी वजह से गुजरात में हुए दंगे में 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का आह्वान किया। बीजेपी के शीर्ष नेताओं पर आपराधिक साजिश के आरोप फिर से बहाल किए।
8 मार्च 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा। पैनल को 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही खत्म करने को कहा।
1 अगस्त 2019 को मध्यस्थता पैनल ने रिपोर्ट प्रस्तुत की। 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता पैनल मामले का समाधान निकालने में विफल रहा।
इसके बाद 6 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई।
16 अक्टूबर 2019 को अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रखा।
फिर आया 9 नवंबर 2019 का ऐतिहासिक दिन जब पूरे देश की सांसे थमी हई थी। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया। 2.77 एकड़ विवादित जमीन हिंदू पक्ष को मिली। मस्जिद के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश दिया।
25 मार्च 2020 को तकरीबन 28 साल बाद रामलला टेंट से निकलर फाइबर के मंदिर में शिफ्ट हुए।
5 अगस्त 2020 को राम मंदिर का भूमि पूजन कार्यक्रम हुआ जिसके बाद मन्दिर।निर्माण का कार्य शुरू हो गया। 18 से 20।नवंबर 2022 को अयोध्या में जन रामायण महोत्सव के दौरान मन्दिर निर्माण कार्य को अपनी आँखों से देखने का सौभाग्य मिला था। आज करोडों हिंदुओं की आस्था का प्रतीक राम मंदिर बनकर तैयार है जो सिर्फ एक मंदिर नहीं बल्कि हर भारतीय के स्वाभिमान से जुड़ा है जिसे वर्षो पूर्व एक विदेशी लुटेरे बाबर ने अपनी कुत्सित मानसिकता से कुचलने का कुकर्म किया था। आज हर भारतवासी गौरवान्वित है कि वर्षों की प्रतीक्षा पूर्ण हुई और प्रभु श्रीरामलला स्थापित हो चुके हैं। इस कार्य मे जिनका भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान रहा सभी का नाम इतिहास में दर्ज हो चुका है। उम्मीद है कि रामलला विराजमान होने के बाद रामराज्य की कल्पना भी साकार हो। मथुरा और काशी में हमारे आराध्य कृष्ण और बाबा विश्वनाथ मुगलिया अतिक्रमण से मुक्त हों।
जय श्री राम
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