समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Saturday, October 16, 2021
927.दो बैल और एक इंजेक्शन
Friday, January 24, 2020
781.गणतंत्र
गणतंत्र
लघुकथा
"सुनो जी! 26 जनवरी को छुट्टी है न तुम्हारी? कहाँ घूमने चलेंगे" कुसुम ने चहकते हुए अपने पति से पूछा।
"अरे नहीं ! उस दिन इतना काम है ऑफिस में सारी तैयारियां करनी है। सुबह ध्वजारोहण करना है फिर झाँकी परेड,पूरे दिन व्यस्तता रहेगी।" रमेश ने बगैर उसी ओर देखे कहा।
"तो फिर सरकार अवकाश की घोषणा क्यों करती है इस दिन?एक दिन की छुट्टी बर्बाद हो जाती है।"पत्नी झल्ला कर बोली।
रमेश ने बड़े प्यार से समझाया "अरे! सरकारी छुट्टी है तो क्या हुआ ।हमारे देश का ये पर्व है, आज के दिन हमारा संविधान लागू हुआ। हम सही मायनों में गणतंत्र हुए इसी का जश्न मनाने का दिन है। सरकार इसलिए छुट्टी देती है कि सभी इस दिन को धूमधाम से मनाएं।"
"वो सब ठीक है लेकिन छुट्टी तो बर्बाद हो जाती है न।आपको ऑफिस तो जाना ही पड़ेगा।" कुसुम की नाराजगी
"अरे बाबा #गणतंत्र_दिवस समारोह खत्म होते ही वापस आ जाऊंगा फिर पूरा दिन छुट्टी ही छुट्टी।शाम को घूमने ले चलूंगा। अब खुश!"
"ठीक है" कुसुम फिर से चहकती हुई चाय बनाने किचन की ओर चली गयी।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह,झारखंड
Sunday, May 5, 2019
574. बदलते रिश्ते
एसडीएस
कोमल के व्यवहार में आये परिवर्तन को देख प्रेम हैरान था। उससे बात किये बगैर जो एक पल भी नहीं रह पाती थी आज वही नजरें बचा रही थी। साथ रहना-साथ खाना-पीना , उठना-बैठना। दिनरात फोन पर बातें करना। प्रेम और कोमल मानों दो जिस्म एक जान से थे। उसकी हर फरमाइश की पूरी करना प्रेम का कार्य था। अपना सबकुछ छोड़कर वह कोमल की खुशियां पूर्ण करने में लगा रहता। फिर एक दिन कोमल की शादी हो गयी और वह बहुत दूर चली गयी। शादी के कुछ दिनों तक थोड़ी बहुत बातचीत हुई। फिर धीरे-धीरे बातचीत का सिलसिला कम होने लगा। कोमल ने बात करना भी बंद कर दिया।
कोमल की शादी के करीब दो साल बाद प्रेम और कोमल की दुबारा मुलाकात हुई तो वह बिल्कुल अजनबियों सा व्यवहार कर रही थी। दिनरात फोन कर बातें करने को जिद करती और अब स्थिति ये है कि सामने भी चुपचाप थी। उसकी चुप्पी प्रेम को खाये जा रही थी। जो कभी उससे सलाह लिए कोई काम नहीं करती थी, आज अपने मन की मालकिन बनी हुई थी। शादी के बाद कितनी बदल गयी थी वो। जिसे कभी अपना भगवान मानती थी अब
आखिर प्रेम ने ही चुप्पी तोड़ी।
" तुम इस कदर बदल जाओगी मुझे अंदाजा नहीं था।"
" आखिर तुम मुझसे बातचीत क्यों नहीं कर रही हो।"
कोमल ने खुद में ही खोये हुए कहा "बस यूँ ही मन नहीं करता."
" क्या अब हमारा रिश्ता खत्म हो गया ? हमारे बिना तो तुम्हें एक पल भी मन नहीं लगता था। अब क्या हो गया?"
" शादी के बाद रिश्ते बदल जाते हैं। मैं भी बदल गयी हूँ"
" ठीक है लेकिन कुछ रिश्ते कभी बदलते नहीं। तुम्हारा यह व्यवहार मुझे तकलीफ देता है। तुम्हें अच्छा लगता है क्या?"
" अब मुझे आपके दर्द-तकलीफ से क्या मतलब। मेरा अब अपना परिवार है। रिश्ते बदल गए हैं।"
"हाँ सही कहा तुमने, जरूरत के हिसाब से अब रिश्ते बदलने लगे हैं। तुम भी बदलते रिश्ते का एक किरदार भर हो."
©पंकज प्रियम