Sunday, May 5, 2019

574. बदलते रिश्ते

एसडीएस

                 कोमल के व्यवहार में आये परिवर्तन को देख प्रेम हैरान था।  उससे बात किये बगैर जो एक पल भी नहीं रह पाती थी आज वही नजरें बचा रही थी। साथ रहना-साथ खाना-पीना , उठना-बैठना। दिनरात फोन पर बातें करना। प्रेम और कोमल मानों दो जिस्म एक जान से थे। उसकी हर फरमाइश की पूरी करना प्रेम का कार्य था। अपना सबकुछ छोड़कर वह कोमल की खुशियां पूर्ण करने में लगा रहता। फिर एक दिन कोमल की शादी हो गयी और वह बहुत दूर चली गयी। शादी के कुछ दिनों तक थोड़ी बहुत बातचीत हुई। फिर धीरे-धीरे बातचीत का सिलसिला कम होने लगा। कोमल ने बात करना भी बंद कर दिया।

    कोमल की शादी के करीब दो साल बाद प्रेम और कोमल की दुबारा मुलाकात हुई तो वह बिल्कुल अजनबियों सा व्यवहार कर रही थी। दिनरात फोन कर बातें करने को जिद करती और अब स्थिति ये है कि सामने भी चुपचाप थी। उसकी चुप्पी प्रेम को खाये जा रही थी। जो कभी उससे सलाह लिए कोई काम नहीं करती थी, आज अपने मन की मालकिन बनी हुई थी। शादी के बाद कितनी बदल गयी थी वो। जिसे कभी अपना भगवान मानती थी अब
आखिर प्रेम ने ही चुप्पी तोड़ी।

" तुम इस कदर बदल जाओगी मुझे अंदाजा नहीं था।"

" आखिर तुम मुझसे बातचीत क्यों नहीं कर रही हो।"

कोमल ने खुद में ही खोये हुए कहा "बस यूँ ही मन नहीं करता."

" क्या अब हमारा रिश्ता खत्म हो गया ? हमारे बिना तो तुम्हें एक पल भी मन नहीं लगता था। अब क्या हो गया?"

" शादी के बाद रिश्ते बदल जाते हैं। मैं भी बदल गयी हूँ"

" ठीक है लेकिन कुछ रिश्ते कभी बदलते नहीं। तुम्हारा यह व्यवहार मुझे तकलीफ देता है। तुम्हें अच्छा लगता है क्या?"
" अब मुझे आपके दर्द-तकलीफ से क्या मतलब। मेरा अब अपना परिवार है। रिश्ते बदल गए हैं।"

"हाँ सही कहा तुमने, जरूरत के हिसाब से अब रिश्ते बदलने लगे हैं। तुम भी बदलते रिश्ते का एक किरदार भर हो."

©पंकज प्रियम

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