Showing posts with label सरसी छंद. Show all posts
Showing posts with label सरसी छंद. Show all posts

Monday, May 18, 2020

836. इश्क समन्दर

नमन साहित्योदय
दिन सोमवार
छंद सृजन-सरसी छंद गीत
मात्रा भार 16,11
प्रेम की बाज़ी

आँखों से छलकाए मदिरा,  मारे नैन कटार।
चंचल चितवन चैन चुराए, तीर चले दिल पार।

होठ गुलाबी होश उड़ाए,         गोरे-गोरे गाल।
घोर घटा घनघोर गगन से, काले-काले बाल।
ज्वार उठाती मौज रवानी, बहती नदिया धार।
चंचल चितवन चैन चुराए, तीर चले दिल पार।

चमचम चमके चंदा जैसी, जैसे पूनम रात।
चंदन चम्पा और चमेली, महके खुश्बू गात।
ख़्वाबों की मलिका सी लगती, जाती चाँद के पार।
चंचल चितवन चैन चुराए, तीर चले दिल पार।

बोझ जवानी लेकर चलती,  नागिन जैसी चाल।
देखे जो भी आशिक सारे,       हो जाते बेहाल।
नैनों से ही बातें करती, नैनों से ही वार।
चंचल चितवन चैन चुराए, तीर चले दिल पार।

सूरज लाली सर पे चमके, नैना तीर कमान।
होठ रसीले नैन नशीले, झट से लेते जान।
फूलों सी वो कोमल काया, प्रेम सुधा रसधार।
चंचल चितवन चैन चुराए, तीर चले दिल पार।

इश्क़ समंदर प्रियम लहरकर,  उमड़े दिल जज़्बात।
लफ़्ज़ मुसाफ़िर बनके फिरता, लेकर दिल सौगात।
प्रेम की बाजी जीत के ये,  जाये खुद दिल हार।
चंचल चितवन चैन चुराए,   तीर चले दिल पार।

©पंकज प्रियम
18.05.2020

Wednesday, July 24, 2019

612.ऋषिकेश

गंगा तीरे भोले राजे, मूर्ति नयनाभिराम।
ऋषिकेश की ये पावन भूमि, देवों का है धाम।
कल-कल बहती पावन गंगा, लेकर शिव का नाम।
दृश्य मनोरम मन को भाता, नैनों को आराम।
©पंकज प्रियम

611.विरह वेदना

विरह वेदना
सावन का यह सूखा मौसम, कैसे करूँ शृंगार।
धरती तड़पे नदिया सूखी, बदरा है  उस पार।
बैचेनी में धरती सारी,......अम्बर रहा निहार।
मोर पपीहा गुमसुम बैठे,.. जैसे बिरहन नार।

सावन तो आया है लेकिन, साजन भी उस पार।
कैसे काटूँ रतिया सारी,.......जियरा में अंगार।
धार-धार बरखा के जैसे,......नैना बहे हजार।
बिजुरी चमके रह-रह ऐसे, मारे जिया कटार।
©पंकज प्रियम