Sunday, December 5, 2010

जिंदगी शाम सी






ग़जल
जिंदगी कुछ धुंधली शाम सी लगती है
भीड़ में भी दुनिया गुमनाम सी लगती है ।
यूँ तो कभी पीता नही ,पर लडखडाता हु
जब गम -ऐ -इश्क भी जामसी लगती है ।
भीड़ में भी तनहा रहने की कसम खा ली है
ये दुनिया भी कुछ अनजान सी लगती है ।
सपने आते हैं अक्सर टूट जाते हैं
फुल खिलते है और बिखर जाते हैं ।
फैसले कर सजा भी खुद दे लेते हैं
नाम की ये जहाँ भी बदनाम सी लगती है ।
जिंदगी भी रुसवा होके कभी शाम सी लगती है
तन्हाई में भी कभी -कभी
रुसवाई की निदान सी लगती है ।
-- पंकज भूषण पाठक "प्रियम"






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