हाथ बढाओ यारो
ता उम्र पड़ी है भागदौड़
फुर्सत तो क्षणभर की निकालो यारो
दिल मिले न मिले
तनिक अपना हाथ तो बढाओ यारो ।
नहीं मकसद कोई हंगामे का
हालात बदलने की एक कवायद है यारो ।
जो न मिले दिल अपना
फिर चाहे जो खुलके कह डालो यारो।
न रंग जाये एक रंग में तो कहना
तनिक प्रेम की पिचकारी तो मरो यारो।
न द्वेष धर्म की .न भेद जात का
रंग मोहब्बत के रंग डालो यारो ।
खुली उंगलिया मुट्ठी बन जाएगी
आवाज एक दिल से निकालो तो यारो ।
शबनम बन जाएगी सागर की लहरे
होली के हुडदांग me ईद की राग निकालो यारो ।
मोहब्बत की तासीर में टूट जाएँगे गिले -शिकवे
दिल की हर बात मुझे कह डालो यारो ।
वादा है प्रियम का आपसे
सूरत ही नही सीरत भी बदलेंगे
प्रेम से खुद को गले से लगाओ तो यारो ।
-- पंकज भूषण पाठक "प्रियम"
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