Saturday, June 29, 2019

590.मुसाफ़िर.. अल्फ़ाज़ों का

समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो,
छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो।
नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत-
मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो।
©पंकज प्रियम

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