ग़ज़ल
बहर- 122*4
काफ़िया-आने
रदीफ़- बहुत है
मुहब्बत 'में तेरे बहाने बहुत हैं
लिखे मैंने' तुझपे फ़साने बहुत हैं।
दिखाना न मुझको कभी हुस्न जलवा,
सजी रूप की तो दुकानें बहुत है।
नज़र से तुम्हारा नज़र यूँ चुराना,
तुम्हारी नज़र के निशाने बहुत हैं।
निगाहों से' ऐसे न खंजर चलाओ,
भरे ज़ख्म दिल में पुराने बहुत हैं।
मुहब्बत में' यूँ तो तराने बहुत हैं,
प्रियम की ग़ज़ल के दिवाने बहुत हैं।
*©पंकज प्रियम*
No comments:
Post a Comment