Friday, November 6, 2020

888.फ़साने बहुत है


ग़ज़ल
बहर- 122*4
काफ़िया-आने
रदीफ़- बहुत है

मुहब्बत 'में तेरे बहाने बहुत हैं
लिखे मैंने' तुझपे फ़साने बहुत हैं।

दिखाना न मुझको कभी हुस्न जलवा,
सजी रूप की तो दुकानें बहुत है।

नज़र से तुम्हारा नज़र यूँ चुराना,
तुम्हारी नज़र के निशाने बहुत हैं।

निगाहों से' ऐसे न खंजर चलाओ,
भरे ज़ख्म दिल में पुराने बहुत हैं।

मुहब्बत में' यूँ तो तराने बहुत हैं,
प्रियम की ग़ज़ल के दिवाने बहुत हैं।
*©पंकज प्रियम*

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