Wednesday, November 11, 2020

890.दीवाली दीप

नमन साहित्योदय

शब्द सीढ़ी
स्वच्छता, पर्व, माटी, कुम्हार, दीप

तनमन की हो *स्वच्छता*, घर बाहर हो साफ।
कचरा करता जो यहाँ, मत कर उसको माफ़।।

दीवाली तो है सदा,साफ़-सफाई *पर्व*।
जीत निशा पे रौशनी, करते सब हैं गर्व।।

*माटी* से ही देह है, इससे ही संसार।
मोल समझ ले जो यहाँ, होगा बेड़ा पार।।

चीनी जगमग रौशनी, रोये रोज़ *कुम्हार*।
आओ मिलकर हम सभी, दें उसको उपहार।।

*दीप* जला इसबार सब, दें उनको मुस्कान।
एक घर चूल्हा जला, भर दें उसमें जान।।
©पंकज प्रियम

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