सदाशिव नाथ शंभु का, महीना है बड़ा पावन,
छटा हरियाली वन-उपवन, लगे प्यारा ये मनभावन।
घटा घनघोर जो बरसे, लगे जब आग पानी से-
समझ आया मुहब्बत का, महीना ये जवां सावन।
चुनर धानी धरा ओढ़े, तरसता घूमता बादल,
धरा का रूप जब देखे, बरसता झूमता बादल।
लगाए आग जो सावन, भला कैसे संभालें मन-
गिराकर बूँद बारिश की, धरा को चूमता बादल।।
सजाकर हाथ में मेंहदी, लगाकर आँख में काजल।
दिखाकर रूप यौवन का, किया है काम को घायल।
अधर रक्तिम नयन मदिरा, सजा सिंगार सोलह वो-
सजन का ताकती रस्ता, पहनकर पाँव में पायल।।
लगा झूला है बागों में, सजा फूलों से है सावन।
मयूरा नाच उठता औ, पपीहा गाये मनभावन।
झुलाते राधे को कान्हा, झूले सखियां हमारी तो-
विरह की वेदना जागे, चले आओ मेरे साजन।।
बरसती बूँद जो छम-छम, लगाती आग पानी में।
बदन बारिश में भींगे तो, उठे शोला जवानी में।
बिजुरिया भी यहाँ रह-रह, कटारी मारती उर में-
भला कैसे संभाले दिल, जवां मौसम तूफानी में।।
गिरी बारिश पहाड़ों पे, गगन से जो घुमड़ कर के।
पहाड़ों से उतरकर के, चली दरिया उमड़ कर के।
उमड़ती देख के दरिया, समंदर ज्वार जो उठता-
मिटा अस्तित्व है देती, समंदर में बिखर कर के।।
पंकज प्रियम
मुहब्बत के महीने में, बना दीवार कोरोना,
सभी को दूर कर डाला, बड़ा बेकार कोरोना।
नहीं मिलना नहीं जुलना, नहीं जो पास आना तो
भला कैसे मुहब्बत हो, रुका संसार कोरोना।।
अभी पट बन्द गौरा के, पड़े चुपचाप शिवशंकर,
नहीं पुकारता माधव, अभी राधा पड़ी है घर।
मेला श्रावणी सूना- महज़ एक खौफ़ कोरोना-
घरों में कैद कांवरिये, पड़ा उदास है कांवर।
फँसा तन लॉकडाउन में, फँसा मन ऑनलाइन में,
लगाकर मास्क चेहरे पर, दिखे सब एक लाइन में।
जहाँ पर खौफ़ पसरा है, जरा उम्मीद हम बनकर-
प्रियम मुस्कान की बारिश, करें हम ऑनलाइन में।
कविता गीत गज़लों से, चलो जनजागरण कर लें,
बड़ी विपदा अभी आयी, सुरक्षा आवरण कर लें।
निकलना हो अगर बाहर, हमेशा मास्क तुम पहनो-
तनिक दूरी बनाने की, सही हम आचरण कर लें।।
©पंकज प्रियम
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