हम समर्थ
हम जो समर्थ, भारत समर्थ,
हमको न समझो अब असमर्थ।
हमसे अवनि हमसे अम्बर,
चढ़ना चाहें सबसे ऊपर।
हम चाँद तारे और सूरज
हर गणित का सुलझाते अर्थ।।
हम जो समर्थ-
हम प्रश्न करते खुद स्वयं से,
हल ढूंढते हम खुद प्रियम से।
हर काम को हम खुद करें जो-
क्या है पर्वत और क्या है गर्त?
हम जो समर्थ-/
जलते दीपक हम हैं बाती,
हर सफ़र के हम हैं साथी।
हम हमकदम बनके चलेंगे-
तुम साथ चलना है ये शर्त।
हम जो समर्थ, भारत समर्थ,
हमको समझो अब असमर्थ।
*©®पंकज प्रियम*
गिरिडीह, झारखण्ड
No comments:
Post a Comment