Tuesday, July 7, 2020

852. तुम्हारे नाम

तुम्हारे नाम लिखता हूँ
तुम्हारे नाम की कविता, सुबह से शाम लिखता हूँ,
कहानी गीत ग़ज़लों से,  तुम्हें पैगाम लिखता हूँ।
यकीं तुझको नहीं हो तो, जरा दिल से तुम्हीं पूछो-
धड़कती जान में हरपल, तुम्हारा नाम लिखता हूँ।

घटा घनघोर सावन की, बरसती शाम लिखता हूँ,
टपकती बूँद के हर कण, तुम्हारा नाम लिखता हूँ।
यकीं मुझपे नहीं हो तो , बरसते मेघ से पूछो-
चमकती बिजलियों से भी, तुम्हें पैगाम लिखता हूँ।

मनोहारी हरा सावन,    मुहब्बत काम लिखता हूँ,
मुहब्बत हो गयी जबसे, तुम्हें ख़त आम लिखता हूँ।
यकीं खुद पे नहीं हो तो, हवाओं से जरा पूछो- 
हवा के संग बादल से,    तुम्हें पैगाम लिखता हूँ।।

लगी सावन की झड़ियों को, मुहब्बत जाम लिखता हूँ,
खड़ी बूंदो की लड़ियों में,  तुम्हारा नाम लिखता हूँ।
यकीं दिल पे नहीं हो तो, जरा बूंदो से तुम पूछो-
सफ़र आगाज़ मैं करके, प्रियम अंजाम लिखता हूँ।।

बनो सीता अगर जो तुम, प्रियम को राम लिखता हूँ
अगर राधा बनो मेरी,  प्रियम को श्याम लिखता हूँ।
यकीं रब पे नहीं हो तो, मुहब्बत से जरा देखो-
अगर मीरा बनो तो मैं, प्रियम घनश्याम लिखता हूँ।।
कवि पंकज प्रियम

1 comment:

Pammi singh'tripti' said...


आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 8 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!