Showing posts with label लेख. Show all posts
Showing posts with label लेख. Show all posts

Thursday, December 12, 2019

750. नाबालिक बलात्कारी

निर्भया काण्ड का मुख्य अपराधी नाबालिक फ़िरोज

एक बलात्कारी कैसे नाबालिक?
******************************************
पंकज प्रियम
**********

16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली में हुए जघन्य निर्भया काण्ड के 6 गुनाहगारों में एक कि मौत हो चुकी है और चार को फाँसी मिलनी तय है लेकिन मुख्य गुनाहगार फ़िरोज बाल सुधार गृह से सबसे कम सज़ा पाकर बाहर निकल चुका है और खून से सने घृणित हाथों से दक्षिण भारत में किसी रसोई में खाना पका रहा है।

गैंगरेप का यह छठा आरोपी उस वक्त नाबालिग था. इसी शख्‍स ने निर्भया को बस में चढ़ने का आग्रह किया था. नतीजतन जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने तीन साल की अधिकतम सजा के साथ उसे सुधार केंद्र में भेजा था. दिसंबर, 2015 में सजा पूरी करने के बाद उसे रिहा कर दिया गया. दावा है कि गैंगरेप के दौरान निर्भया से सबसे ज्यादा दरिंदगी इसी नाबालिग ने की थी.
पुलिस जांच में सामने आ चुका है कि इस छठे नाबालिग दोषी ने पीड़ित लड़की को आवाज देकर बस में बुलाया था। यही नहीं, बस में बैठने के बाद सबसे कम उम्र के इसी आरोपी ने बाकी पांचों लोगों को गैंगरेप के लिए न सिर्फ उकसाया बल्कि इस पूरे घटनाक्रम का सूत्रधार भी बना। जांच में पुलिस को यह भी पता चला कि इस नाबालिग लड़के ने गैंगरेप के दौरान पीड़ित लड़की पर कई जुल्‍म किए। इस लड़के ने ही दो बार बड़ी बेरहमी से लड़की से बलात्कार किया था। उसकी वहशियाना हरकतों की वजह से ही छात्रा की आंतें तक बाहर आ गई थीं। उस दौरान वो बहादुर लड़की जूझ रही थी, बचने के लिए आरोपियों को दांत से काट रही थी, लात मार रही थी लेकिन शायद उसने भी इस बात की कल्पना नहीं की थी कि लोहे की जंग लगी रॉड के इस्तेमाल से उसके साथ भयानक टॉर्चर होगा। निर्भया की आंतों को नुकसान पहुंचने की वजह से उसके कई बार ऑपरेशन करने पड़े। आखिरकार डॉक्टरों को उसकी आंतें ही काटकर बाहर निकालनी पड़ीं, पूरे शरीर में इंफेक्शन फैल गया, उसे सिंगापुर इलाज के लिए ले जाया गया, लेकिन खुद को नाबालिग बताने वाले उस बर्बर आरोपी के आगे दवा और दुआ फेल हो गई और दर्द से लड़ते हुए पीड़ित ने दम तोड़ दिया।

हालांकि वह कुछ ही महीनों बाद 18 साल का होने वाला था लेकिन कोर्ट ने मौजूदा कानून के आधार पर उसे नाबालिग मानते हुए सजा देने की बजाए सुधार गृह में भेजने का फैसला सुनाया। यही वो केस है जिसके बाद नाबालिगों की उम्र 18 से घटाकर 16 कर दी गई। निर्भया के दोषियों में से यही एक चेहरा है जिसे आज तक देश ने नहीं देखा है। चौंका देने वाली बात ये है कि निर्भया के छह दोषियों में से इसे छोड़ कर सभी को हाईकोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में डाली गई समीक्षा याचिका पर फैसला आ चुका है, जिसमें चारों की फांसी की सजा को बरकरार रखा गया है। इस मामले में दोषी नाबालिग अब 23 साल का हो गया है और आजाद है। कुछ दिन सुधार गृह में रहने के बाद दिसंबर 2016 में उसे मुक्त कर दिया गया। निर्भया मामले में दोषी नाबालिग दक्षिण भारत में कही कुक का काम कर रहा है। एक एनजीओ के अधिकारी ने बताया कि वह एक नए रूप में आ चुका है और यहां तक की उसने एक नया नाम भी रख लिया है। उसने दिल्ली में प्रेक्षणगृह में खाना पकाने का काम सीखा था।
दिल्‍ली गैंगरेप केस का नाबालिग दोषी सिर्फ तीन साल सजा काटने के बाद 20 दिसंबर को रिहा हो गया। उसकी रिहाई से देश के इंसाफ पसंद लोग दुखी हैं तो निर्भया की मां और पिता की आंखों से आंसू बह रहे हैं। वे टीवी चैनलों से कई बार कह चुके हैं कि उनके साथ न्‍याय नहीं हुआ। 17 साल 6 महीने की उम्र में 16 दिसंबर 2012 को दिल्‍ली के बसंत विहार में निर्भया के साथ जिस शख्‍स ने सबसे ज्‍यादा बर्बरता की थी, वो  सबसे कम सजा पाकर छूट गया। मीडिया में बात सामने न आई होती तो शायद दिल्‍ली सरकार की ओर से उसे नई जिंदगी शुरू करने के लिए 10, 000 रुपए और एक सिलाई मशीन भी मिल गई होती।
न आई होती तो शायद दिल्‍ली सरकार की ओर से उसे नई जिंदगी शुरू करने के लिए 10, 000 रुपए और एक सिलाई मशीन भी मिल गई होती और उसकी रिहाई में दिल्ली सरकार की बड़ी भूमिका रही है। यही नहीं तमाम तथाकथित बुद्धिजीवी और मानवाधिकारी संघटनों ने भी उसको बचाने में अहम योगदान दिया।

Tuesday, December 10, 2019

743. फाँसी बनाम प्रदूषण

फाँसी बनाम प्रदूषण!

निर्भया बलात्कार और हत्या मामले के एक आरोपी ने याचिका दायर कर फाँसी की सज़ा पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। उसकी तरफ वकील की बेहद घटिया दलील सुन रहा था। बड़ी बेशर्मी से वह एक बलात्कारी और हत्यारे को बचाने के लिए कहता है कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है अतः मेरे मुवक्किल को फाँसी न दी जाय। मतलब हद है चूतियापे की, साले पैसों के लिए अपनी बहन बेटी को भी बेच दोगे। निर्भया की जगह अगर उसकी अपनी बेटी होती तब भी क्या वह वकील दाँत निपोरते हुए यह बात कहता?  प्रदूषण और फाँसी में भला तारतम्य? प्रदूषण से तो तुम भी मर जाओगे तो फिर एक बलात्कारी के लिए क्यों केस लड़ रहे हो? इतने पैसे लेकर क्या करोगे?

प्रदूषण से केवल तुम्हारे मुवक्किल की उमर कम नहीं हो रही है बल्कि तुम्हारी भी तो हो रही है तो फिर काहे की मोहमाया। जाओ भजन कीर्तन करो जिससे भव सागर पार कर सको। वैसे भी बलात्कारियों का पक्ष लेकर इतने पाप कर चुके हो कि नरक में भी जगह मिलनी मुश्किल है। मैंने इसे कई पापियों को मरते वक्त महीनों तक पड़ा देखा है जिसके शरीर में कीड़े पड़ जाते हैं। वास्तव में वही नरक है।

जरा निर्भया की उस पीड़ा को तो समझ लेते की किस दर्द से गुजरी होगी जब इन दरिंदो ने उसका गैंगरेप करने के बाद गुप्तांग में हाथ और सरिया डालकर आँत तक बाहर निकाल ली थी। जिसने सरिया डाला वह फिरोज तो नाबालिक होने का नाजायज फायदा उठा कर बाल सुधार गृह में मुफ्त की रोटियां खा रहा है। जो लड़का बलात्कार कर सकता है! गुप्तांग में लोहे का रॉड घुसेड़ सकता है!, वह किस नज़र से नाबालिक है ? वह तो आदमी कहलाने के भी लायक नहीं बल्कि हैवान है जिसका कोई मानवाधिकार नहीं होना चाहिए। चूंकि वह अल्पसंख्यक है इसलिये कोर्ट के साथ-साथ छद्म सेक्युलरों ने भी उसकव बचाने में जोर आजमाइश लगा दी। सबसे पहली फाँसी तो उसे ही देनी चाहिए।

ऐसे ही वकीलों के कारण अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं। अगर उन्नाव के आरोपियों को जमानत नहीं मिलती तो पीड़ित आज जीवित होती। ऐसे वकील पैसों कर लिए आतंकवादियो का भी केस लड़ने को तैयार हो जाते हैं। उसके लिए आधी रात को भी कोर्ट खुलवा देते हैं। धिक्कार है ऐसे वकीलों पर और जजों पर जो आम जनता को तो वर्षो तक तारीख़ पे तारीख के चक्कर घिन्नी में घुमाते रहते हैं लेकिन आतंकवादियों को बचाने के लिए आधी रात भी कोर्ट खोल कर बैठ जाते हैं।

अब जबकि दया याचिका ख़ारिज हो चुकी और यह बिल्कुल तय है कि चारो आरोपियो को फाँसी होगी तो उसे बचाने की फिर बेजा कोशिश शुरू हो गयी है। जब सुप्रीम कोर्ट ने फाँसी की सजा सुना दी और दया याचिका खारिज हो तब फिर ये कोशिश सिर्फ मामले को लटकाने की है। हमारे लचर संविधान और न्यायिक प्रक्रिया के इन्ही दोषों के कारण कड़े कानून होने के बावजूद भी अपराध थमने का नाम नहीं लेता। क्योंकि उन्हें पता है कि  बचना आसान है जबतक चंद पैसों में खुद को बेचने वाले लोग न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका में विराजमान हैं।
© पंकज प्रियम

Monday, December 9, 2019

738. नागरिकता बिल

नागरिकता बिल

आखिरकार नागरिकता संसोधन बिल लोकसभा में पेश  हो गया लेकिन कुछ लोग इसमें भी अपनी गन्दी सियासत करने में लग गए हैं। आखिर इसमें गलत क्या है? जो शरणार्थी हैं उन्हें अधिकार मिलेगा और जो घुसपैठ करते हैं उनपर रोक लगेगी। कौन नहीं जानता कि बंगाल और असम में बांग्लादेशी रोहिंग्या का लगातार घुसपैठ हो रहा है जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है। आज जितने भी बड़े अपराध हो रहे हैं उसमें इन घुसपैठियों की भूमिका सबसे अधिक संदिग्ध है। आखिर इसे धर्म से जोड़ कर क्यूँ देखा जा रहा है। 1947 में धर्म के ही आधार पर भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ जिसमें लाखों बेगुनाहों का खून बहा। मुस्लिम पाकिस्तान चले गए और हिन्दू भारत, लेकिन पाकिस्तान जैसे देशों में गैर मुस्लिमों के साथ क्या हुआ?उन्हें जलालत की जिंदगी जीने को मजबूर होना पड़ा। मजबूरन वे भारत में आने लगे लेकिन शरणार्थी होने की वजह से कोई पहचान और अधिकार नहीं मिला।  कश्मीर में तो अपने ही घर मे कश्मीरी पंडितों के साथ क्या ज्यादती हुई ? अपने ही देश मे शरणार्थी बन गये। इसकी बात कोई नहीं करता लेकिन वोट बैंक की ख़ातिर एक मजहब विशेष को लेकर सभी विधवा विलाप करने लगते हैं। बढ़ती जनसंख्या भारत की सबसे बड़ी समस्या है ऊपर से नाजायज़ घुसपैठ ने कोढ़ में खाज का रोग खड़ा कर दिया है। अगर इसे नहीं रोका गया तो भारत की अस्मिता और अस्तित्व पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा। नागरिकता संशोधन बिल न केवल शरणार्थियों को पहचान देने का कार्य करेगा बल्कि घुसपैठ पर अंकुश लगाने में भी सहयोग करेगा। आज जो लोग भी इसका विरोध कर रहे हैं वो केवल वोट बैंक की ख़ातिर।
क्या है नागरिकता (संशोधन) बिल?

नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसम्बर 2014 तक भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध शरणार्थी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है. इस विधेयक में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है. इसके लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में कुछ संशोधन किए जाएंगे ताकि लोगों को नागरिकता देने के लिए उनकी क़ानूनी मदद की जा सके. मौजूदा क़ानून के तहत भारत में अवैध तरीक़े से दाख़िल होने वाले लोगों को नागरिकता नहीं मिल सकती है और उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने के प्रावधान है.एनआरसी यानी नेशनल सिटिज़न रजिस्टर इसे आसान भाषा में भारतीय नागरिकों की एक लिस्ट समझा जा सकता है. एनआरसी से पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं. जिसका नाम इस लिस्ट में नहीं, उसे अवैध निवासी माना जाता है.
असम भारत का पहला राज्य है जहां वर्ष 1951 के बाद एनआरसी लिस्ट अपडेट की गई. असम में नेशनल सिटिजन रजिस्टर सबसे पहले 1951 में तैयार कराया गया था और ये वहां अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की कथित घुसपैठ की वजह से हुए जनांदोलनों का नतीजा था. इस जन आंदोलन के बाद असम समझौते पर दस्तख़त हुए थे और साल 1986 में सिटिज़नशिप एक्ट में संशोधन कर उसमें असम के लिए विशेष प्रावधान बनया गया. इसके बाद साल 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में असम सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन यानी आसू के साथ-साथ केंद्र ने भी हिस्सा लिया था. इस बैठक में तय हुआ कि असम में एनआरसी को अपडेट किया जाना चाहिए.सुप्रीम कोर्ट पहली बार इस प्रक्रिया में 2009 में शामिल हुआ और 2014 में असम सरकार को एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया. इस तरह 2015 से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यह पूरी प्रक्रिया एक बार फिर शुरू हुई. 31 अगस्त 2019 को एनआरसी की आख़िरी लिस्ट जारी की गई और 19,06,657 लोग इस लिस्ट से बाहर हो गए.

बेजा विरोध!
किसी भी नौकरी या नामांकन का फॉर्म धर्म के आधार पर भरा जाता है। आरक्षण जाति और धर्म के आधार पर दिया जा रहा है जिसका कोई विरोध नहीं करता लेकिन वही सारे लोग नागरिकता बिल को धर्म के चश्मे से देखने लगे हैं। अखण्ड भारत पहले आर्यावर्त्त था जिसकी सीमा में लगे आज के सारे देश शामिल थे लेकिन विदेशी आक्रमणकारियों ने इसकी एकता और अखण्डता को चूर चूर कर दिया। उन्ही विदेशी लुटेरों को महान बताकर उस का इतिहास हमें पढ़ाया जाता है। मुगलों ने भारत के हिन्दुओ के साथ कितना अत्याचार किया, कितने मंदिर तोड़कर मस्जिद बना ली। जिसका प्रत्यक्ष और जीवंत उदाहरण आज भी मथुरा और काशी में देखा जा सकता है। हर शहर, हर सड़क को उनलोगों अपने नाम पर बदल दिया लेकिन हम आज भी उनकी ख़िलाफ़त नहीं करते कि वोट बैंक खराब हो जाएगा। तथाकथित छ्द्म सेक्युलर नेता और लोग अपने धर्म को तो महत्व देते नहीं और दिखावे के लिए दूसरे धर्म के प्रति आस्था जताते हैं। अरे जो अपने धर्म का नहीं हुआ वह दूसरे ख़ाक होगा!
ओबैसी का डर
संसद में बिल फाड़कर संविधान का अपमान करनेवाला हैदराबाद सांसद ओबैसी मुस्लिम कौम को लेकर कितना जहर उगलता रहता है ? उन्हें डराता रहता है लेकिन जब हिंदुओ की बात आती है तो चुप हो जाता है। दरअसल ओबैसी की राजनीति मुसलमानों को डराने वाली है। वह खुद को मुसलमान का मसीहा साबित करना चाहता है। मुस्लिमों के डर से ही उसकी सियासत चलती है। कितना जहर भरा है उसकी जुबान में यह उसके भाषणों में स्पस्ट दिखता है। अयोध्या मसले पर उसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला मान्य नहीं लेकिन चार बलात्कारियों का एनकाउंटर हो गया तो कोर्ट की बात करने लगा। वह हैदराबाद के सांसद है लेकिन प्रियंका की मौत पर आँसू नहीं निकले मगर चार बलात्कारियो  के एनकाउन्टर से विधवा विलाप करने लगा क्योंकि चारो बलात्कारी मुस्लिम था। जिसके शवों को दफनाया गया। उनलोगों के मानवाधिकार को लेकर हल्ला करने लगा। क्या वह सांसद सिर्फ बलात्कारियों का था,प्रियंका रेड्डी उसके क्षेत्र से नहीं थी?
बाकी जो भी दल विरोध में है उसके पीछे एकमात्र वजह वोट बैंक की सियासत और मोदी का अंधविरोध है।

©पंकज प्रियम

Sunday, December 8, 2019

735.हैवानों से हमदर्दी क्यूँ-3

हैवानों से किसी हमदर्दी, दानवों का कैसा मानवाधिकार?-3
*******************************
बलात्कारियों को अरेस्ट करने की बजाय सीधे ठोक देना चाहिए। न गिरफ्तारी होगी और न एनकाउंटर के लिए सवाल जवाब। न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी। जब सबकुछ स्पस्ट हो की बलात्कार और हत्या इन्ही लोगों ने की है तो गिरफ्तार करने की बजाय उन्हें भी सरेआम जिंदा जला देना चाहिए ताकि दूसरे घृणित सोच वाले ऐसा जघन्य अपराध करने से पहले सौ बार सोचे।

एनकाउंटर पर सवाल करने और अपराधियों से हमदर्दी करने वालों पर भी मुकदमा होना चाहिए। अगर कानून सजा न दे तो जनता को खुद उन्हें सजा देनी चाहिए। उनका सामाजिक बहिष्कार हो, जहाँ दिखे उनकी जुत्तों से धुनाई हो। जो हैवान है दानव है उसको किसी भी तरह की दया याचिका का अधिकार न हो।

अगर एक अपराधी को क्षमा याचिका दायर करने का अधिकार है तो फिर उस परिवार को भी जल्द न्याय और सार्वजनिक दण्ड देने का अधिकार मिलना चाहिए। उसे भी याचिका दायर करने का मौका मिले।

ओबैसी हैदराबाद के सांसद है उसके यहाँ रेप पीड़िता की जिंदा जलाकर हत्या कर दी गयी लेकिन 9 दिनों तक उसकी जुबाँ से एक लफ्ज़ तक नहीं निकला लेकिन जैसे ही बलात्कारियों का एनकाउंटर हुआ आवारा कुत्ते सा बाहर निकल कर रोने लगा। एक सांसद होने के नाते वह पीड़िता और उसके परिजन उसकी जवाबदेही थी लेकिन चूंकि वह हिन्दू थी इसलिए वह चुप रहा। तबरेज के लिए वह आँसू बहाने के लिए वह झारखण्ड तक पहुंच गया लेकिन एक रेप पीड़िता डॉक्टर की चार दरिंदों ने जिन्दा जल दिया लेकिन वह झांकने तक नहीं गया क्योंकि यहाँ मोब्लिंचिंग करने वाले दरिंदे उसकी कौम के थे। लिहाज़ा एनकाउंटर होते ही उसकी छाती फटने लगी। शर्म आनी चाहिए तुम्हें ओबेसी! धिक्कार है तुझपर।

यही हाल शशि थरूर जिसकी पत्नी उसके कारण मर गयी,हमेशा लड़कियों को वासना की दृष्टि से घूरता लिपटा रहता है तो बलात्कारियों के लिए हमदर्दी होगी ही। येचुरी तो वामपंथी है तो इनलोगों को मानवाधिकार सिर्फ आतंकवादी, बलात्कारी और हत्यारों के लिए ही है। शर्म आती है ऐसे लोगों पर।

हैदराबाद एनकाउंटर को लेकर जहाँ मानवाधिकार आयोग ने नोटिश जारी कर जाँच शुरू कर दी है वहीं हाइकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर सोमवार को सुनवाई की तारीख भी तय कर दी है। यही नहीं एक दर्जन से अधिक महिला और मानवाधिकार संगठनों ने एनकाउंटर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। आखिर दोषियों को सजा मिले कैसे? पीड़ितों को इंसाफ़ मिले कैसे? Ndtv and रब्बिस कुमार ने एनकाउंटर के खिलाफ विशेष बुलेटिन चलानी शुरू कर दी है। इनलोगों को चुल्लू भर पानी मे डूबकर मर जाना चाहिए। मासूमों के गैंगरेप और फिर उनकी जघन्य हत्या पर खामोश रहते हैं लेकिन जैसे ही बलात्कारियों का एनकाउंटर होता है ये गली के आवारा कुत्तों की तरह भौंकना शुरू कर देते हैं। मानवाधिकार आयोग, हाइकोर्ट और उन 15 महिला संगठनों से भी सवाल करना चाहता हूं कि क्या डॉ प्रियंका रेड्डी या फिर उन्नाव की बेटी का मानवाधिकार नहीं था जो उसके लिए एक शब्द नहीं निकला, कोई संज्ञान नहीं और रवीश ने उसकर कोई प्राइमटाइम नहीं की? जो आज सभी मुँह उठाकर बलात्कारियों का मानवाधिकार ढूंढ़ने में लगे हैं। उन न्यायाधीश से भी सवाल है कि इतने जघन्य अपराध के बावजूद बलात्कारियों को जमानत क्यूँ दी, उस वकील को जो पैसे मिले होंगे उससे अपनी बेटी,बीवी या माँ-बहन के लिए साड़ी खरीदकर इज्जत ढंक पायेगा क्या? उस  कानून के रखवालों पर भी सवाल है जो कार्रवाई करने में देरी की, जब पता था कि वह कोर्ट में गवाही देने जा रही है तो उसे सुरक्षा क्यूँ नहीं दी गयी।
सवाल तो असंवेदनशील हो चुके समाज से भी है जो जलने के बाद भी एक किलोमीटर तक जान बचाने को दौड़ती लड़की को किसी ने मदद नहीं की और तमाशबीन बना रहा। अगर बलात्कारियों को पकड़ते ही गोली मार दी जाय तो फिर अपराधी अपराध करने से पहले सौ बार सोचेगा। एनकाउंटर सही हुआ या गलत इसपर सवाल उठाने की बजाय पुलिसकर्मियों की सराहना होनी चाहिए कि अपराधियों को दण्ड मिला। जनता के मत से सरकार बनती है और आज पूरे देश का एक ही मत है कि जल्द इंसाफ मिले, हैदराबाद की तरह इंसाफ मिले तो फिर इसपर जो सवाल खड़े कर रहे हैं जो याचिका दायर कर रहे हैं वे ही समाज के असली दुश्मन हैं। उन्हें चिन्हित कर पहले उनको सजा देनी चाहिए। जो हैवान है उसके साथ किसी हमदर्दी, जो दानव है उसका कैसा मानवाधिकार?
©पंकज प्रियम

Friday, December 6, 2019

733. हैवानों से हमदर्दी क्यों

हैवानों से कैसी हमदर्दी? किस बात की ह्यूमन राइट?

मानवाधिकार आयोग को हमेशा आतंकवादी, उग्रवादी और दरिंदो की मौत पर ही क्यूँ चिंता होती है। निर्दोष नागरिक, पुलिस जवान और निर्भया-प्रियंका जैसी बलात्कार पीड़ितों की चिंता क्यूँ नहीं करती?
आज रेपिस्टों की मौत पर जितना तेजी से संज्ञान लिया, काश की मासूमों के साथ रेप और फिर हत्या पर संज्ञान लेकर सज़ा सुनवाने का दबाव बनाता!
निर्भया मामले को 7 वर्षो से लटकाने पर संज्ञान लेता!  मुख्य आरोपी को अल्पसंख्यक नाबालिक कहकर बचाने के मामले पर संज्ञान लेता!
याकूब मेनन के लिए आधी रात कोर्ट खुलवाने पर संज्ञान लेता!
आज जो भी व्यक्ति या संस्था बलात्कारियों के एनकाउंटर पर सवाल खड़ा कर रहा है वह भी दिमागी तौर पर बलात्कारी है और उसे भी वही सजा मिलनी चाहिये।

हैदराबाद हाइकोर्ट ने भी तुरन्त स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई की तारीख तय कर दी। तब क्या हाइकोर्ट के सारे जज सो रहे थे जब एक लड़की की रेप कर उसे जिंदा जला दिया गया! 9 दिनों तक कोर्ट क्या कर रही थी? बलात्कारियों के एनकाउंटर पर तुरंत नींद खुल गयी!

टुच्चा ओबैसी के मुँह से रेप पर कोई शब्द नहीं निकला लेकिन आज एनकाउंटर को गलत बताने के लिए भौंकता फिर रहा है।

बहूत सही कहा राष्ट्रपति कोविंद ने की अपराधियों को दया याचिका दायर करने का अधिकार खतम कर देना चाहिये।
अरे, जिसने किसी की आत्मा को मारकर उसे जिंदा जला दी , किसी की जिंदगी को ही खत्म कर दी, उसका कैसा ह्यूमन राइट्स? किस बात की दया ?
जिस तरह एक किसी अपराधी को दया याचिका दायर करने का अधिकार है उसी तरह बलात्कार पीड़िता के परिजनों को भी निश्चित समय के भीतर इंसाफ या फिर अपराधियों को अपने हाथ से सजा देने का अधिकार मिलना चाहिये। इसके लिए उन्हें भी कोर्ट या राष्ट्रपति के पास सज़ा याचिका दायर करने का अधिकार मिलना चाहिये।

©पंकज प्रियम

Tuesday, November 26, 2019

729. विनाशकाले

विनाशकाले विपरीत बुद्धि
©पंकज प्रियम
ब्राह्मणों से किस बात की इतनी नफऱत? यह कैसी नफऱत की तस्वीर है? कौन सी घृणित मानसिकता है जो इस देश की अखंडता को तोड़ना चाहती है उन्हें चिन्हित कर सरेआम दण्ड दिया जाना चाहिए। क्यों भारत छोड़ेगा ब्राह्मण? भारत किसी के बाप की जागीर है क्या? भारत को भारतवर्ष ब्राह्मणों के यज्ञ-तप और बुद्धिमत्ता ने बनाया है। उसे सुरक्षा क्षत्रियों के शौर्यबल से मिली है, भरणपोषण की जिम्मेवारी वैश्यों ने निर्वहन किया और साधन-संसाधन जुटाने का काम शूद्रों ने किया। ब्राह्मणों ने हमेशा सभी वर्णों को एकसूत्र में बांधकर रखा। जिसे तोड़ने की घृणित सोच विदेशी लुटेरे मुगल और अंग्रेजों की रही है और आज वही कार्य कुछ तथाकथित वामपंथी सोच ,छद्मसेक्युलर और भीमसेना कर रही है। भारत की आज़ादी के लिए सबसे पहली जंग ब्राह्मण मंगल पाण्डेय ने ही छेड़ी थी और चंद्रशेखर आज़ाद ने अंग्रेजों को अपनी लाश में भी सटने नहीं दिया। आजतक ब्राह्मणों ने किसी का अहित नहीं सोचा। सदैव लोगों का कल्याण ही किया और परोपकार में लगा रहा। आप राह गुजरते किसी भी ब्राह्मण को स्नेह से एक नज़र भर देखे उसका हाथ स्वतः आशीर्वाद के लिए उठ जाता है और दिल से आवाज़ निकलती है -कल्याण हो! कोई भी राजा कोई भी शासक चाहे कितना भी बलिष्ठ और शक्तिशाली क्यूँ न हो उसे सही मार्ग और ज्ञान ब्राह्मणों ने ही दिया। आजतक जितने भी बड़े नेता और मंत्री हुए उनके गुरु और सलाहकार कोई न कोई ब्राह्मण ही है। झारखण्ड में ही बड़े नेताओं को गिना देता हूँ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी- तिवारी जी, अर्जुन मुंडा- अयोध्या नाथ मिश्र जी, हेमंत सोरेन-विनोद पांडेय जी, सुदेश महतो- हिमांशु जी इसी तरह प्रधामनंत्री सहित देशभर के तमाम नेताओं के सही मार्ग ब्राह्मण ही दिखाता  रहा है। महात्मा गाँधी के भी गुरु ब्राह्मण ही थे। ऋषि-मुनि हमेशा निस्वार्थ भाव से जगत कल्याण हेतु यज्ञ और तपस्या करते रहे। जिस जय भीम वालों ने यह लिखा है उसके तथाकथित भगवान भीमराव अम्बेडकर को भी शिक्षा दीक्षा एक ब्राह्मण ने ही दी थी। अम्बेडकर ने जिस संविधान का संयोजन किया उसका मूल आधार मनुस्मृति और चाणक्य नीति से ही जुड़ा हुआ है। चाणक्य चाहते तो खुद नन्द वंश का सफाया कर सकते थे लेकिन एक वंचित पीड़ित चन्द्रगुप्त को जमीन से उठाकर मगध का सम्राट बना दिया और मगध की रक्षा में ही अपने प्राण त्याग दिए। परशुराम, कालिदास, तुलसीदास, वशिष्ट, सुदामा, द्रोण, सावरकर,मंगल पांडेय, चन्द्रशेखर आज़ाद बाजीराव अनगिनत नाम है जिन्होंने इस धरती के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। ब्राह्मणों से शुरू से सभी वर्गों को महत्व दिया। जन्म से लेकर मृत्यु तक जितने भी संस्कार बने उसमें सभी वर्गों को पूजनीय और महत्वपूर्ण भाग दिया। चाहे वह हजामत बनानेवाला नाई हो,कुम्हार हो, धोबी हो, डोम-चाण्डाल हो, बाँस का काम करने वाला धपरा हो, बढ़ई हो या फिर पानी भरनेवाली पनिहारिन हो सबको साथ लेकर उन्हें ब्राह्मणों के समान ही उचित मान-सम्मान दिलाने की व्यवस्था की गई है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णों को उनकी क्षमता और बुद्धि के अनुसार अपने-अपने क्षेत्र में पूरी आज़ादी के साथ कार्य करने का अवसर मिलता रहा है। "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया" के मूलमंत्र से समाज चल रहा था। भला इससे बड़ा समाजवाद क्या हो सकता है जिसमे परस्पर सहयोग और सम्मान से लोगों का सुखद निर्वाह हो। जातिगत भेदभाव तो मौजूदा आरक्षण प्रणाली ने शुरू की जहाँ परीक्षा के फॉर्म में भी जाति और धर्म लिखने की बाध्यता होती है। वेदों में, ग्रन्थ-पुराणों में, रामायण और महाभारत में कहाँ किसी का कोई जाति-धर्म वर्णित है। घृणित भेदभाव का ज़हर तो आज भीमसेना फैला रही है। यह सेना जिस राम से नफरत करती है उसे पता नहीं कि भीमराम अम्बेडकर का पूरा नाम #भिवा_रामजी_आबंडवेकर है जिसे बाद में एक देवरुखे ब्राह्मण शिक्षक #कृष्णा_महादेव_आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, ने उनके नाम से 'आंबडवेकर' हटाकर अपना सरल 'आंबेडकर' उपनाम जोड़ दिया। तब से आज तक वे आम्बेडकर नाम से जाने जाते हैं। माना कि उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया लेकिन गौतम बुद्ध को भी भगवान राम का ही एक रूप माना गया है। बुद्ध को भगवान विष्णु के दशावतार का नवम (09) अवतार माना गया है। अतः जो भीम सेना भगवान विष्णु,राम या कृष्ण की मूर्ति तोड़ते हैं वे सीधे बुद्ध का ही अपमान करते हैं।