नागरिकता बिल
आखिरकार नागरिकता संसोधन बिल लोकसभा में पेश हो गया लेकिन कुछ लोग इसमें भी अपनी गन्दी सियासत करने में लग गए हैं। आखिर इसमें गलत क्या है? जो शरणार्थी हैं उन्हें अधिकार मिलेगा और जो घुसपैठ करते हैं उनपर रोक लगेगी। कौन नहीं जानता कि बंगाल और असम में बांग्लादेशी रोहिंग्या का लगातार घुसपैठ हो रहा है जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है। आज जितने भी बड़े अपराध हो रहे हैं उसमें इन घुसपैठियों की भूमिका सबसे अधिक संदिग्ध है। आखिर इसे धर्म से जोड़ कर क्यूँ देखा जा रहा है। 1947 में धर्म के ही आधार पर भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ जिसमें लाखों बेगुनाहों का खून बहा। मुस्लिम पाकिस्तान चले गए और हिन्दू भारत, लेकिन पाकिस्तान जैसे देशों में गैर मुस्लिमों के साथ क्या हुआ?उन्हें जलालत की जिंदगी जीने को मजबूर होना पड़ा। मजबूरन वे भारत में आने लगे लेकिन शरणार्थी होने की वजह से कोई पहचान और अधिकार नहीं मिला। कश्मीर में तो अपने ही घर मे कश्मीरी पंडितों के साथ क्या ज्यादती हुई ? अपने ही देश मे शरणार्थी बन गये। इसकी बात कोई नहीं करता लेकिन वोट बैंक की ख़ातिर एक मजहब विशेष को लेकर सभी विधवा विलाप करने लगते हैं। बढ़ती जनसंख्या भारत की सबसे बड़ी समस्या है ऊपर से नाजायज़ घुसपैठ ने कोढ़ में खाज का रोग खड़ा कर दिया है। अगर इसे नहीं रोका गया तो भारत की अस्मिता और अस्तित्व पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा। नागरिकता संशोधन बिल न केवल शरणार्थियों को पहचान देने का कार्य करेगा बल्कि घुसपैठ पर अंकुश लगाने में भी सहयोग करेगा। आज जो लोग भी इसका विरोध कर रहे हैं वो केवल वोट बैंक की ख़ातिर।
क्या है नागरिकता (संशोधन) बिल?
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसम्बर 2014 तक भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध शरणार्थी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
मौजूदा क़ानून के मुताबिक़ किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है. इस विधेयक में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है. इसके लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में कुछ संशोधन किए जाएंगे ताकि लोगों को नागरिकता देने के लिए उनकी क़ानूनी मदद की जा सके. मौजूदा क़ानून के तहत भारत में अवैध तरीक़े से दाख़िल होने वाले लोगों को नागरिकता नहीं मिल सकती है और उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने के प्रावधान है.एनआरसी यानी नेशनल सिटिज़न रजिस्टर इसे आसान भाषा में भारतीय नागरिकों की एक लिस्ट समझा जा सकता है. एनआरसी से पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं. जिसका नाम इस लिस्ट में नहीं, उसे अवैध निवासी माना जाता है.
असम भारत का पहला राज्य है जहां वर्ष 1951 के बाद एनआरसी लिस्ट अपडेट की गई. असम में नेशनल सिटिजन रजिस्टर सबसे पहले 1951 में तैयार कराया गया था और ये वहां अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की कथित घुसपैठ की वजह से हुए जनांदोलनों का नतीजा था. इस जन आंदोलन के बाद असम समझौते पर दस्तख़त हुए थे और साल 1986 में सिटिज़नशिप एक्ट में संशोधन कर उसमें असम के लिए विशेष प्रावधान बनया गया. इसके बाद साल 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में असम सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन यानी आसू के साथ-साथ केंद्र ने भी हिस्सा लिया था. इस बैठक में तय हुआ कि असम में एनआरसी को अपडेट किया जाना चाहिए.सुप्रीम कोर्ट पहली बार इस प्रक्रिया में 2009 में शामिल हुआ और 2014 में असम सरकार को एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया. इस तरह 2015 से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यह पूरी प्रक्रिया एक बार फिर शुरू हुई. 31 अगस्त 2019 को एनआरसी की आख़िरी लिस्ट जारी की गई और 19,06,657 लोग इस लिस्ट से बाहर हो गए.
बेजा विरोध!
किसी भी नौकरी या नामांकन का फॉर्म धर्म के आधार पर भरा जाता है। आरक्षण जाति और धर्म के आधार पर दिया जा रहा है जिसका कोई विरोध नहीं करता लेकिन वही सारे लोग नागरिकता बिल को धर्म के चश्मे से देखने लगे हैं। अखण्ड भारत पहले आर्यावर्त्त था जिसकी सीमा में लगे आज के सारे देश शामिल थे लेकिन विदेशी आक्रमणकारियों ने इसकी एकता और अखण्डता को चूर चूर कर दिया। उन्ही विदेशी लुटेरों को महान बताकर उस का इतिहास हमें पढ़ाया जाता है। मुगलों ने भारत के हिन्दुओ के साथ कितना अत्याचार किया, कितने मंदिर तोड़कर मस्जिद बना ली। जिसका प्रत्यक्ष और जीवंत उदाहरण आज भी मथुरा और काशी में देखा जा सकता है। हर शहर, हर सड़क को उनलोगों अपने नाम पर बदल दिया लेकिन हम आज भी उनकी ख़िलाफ़त नहीं करते कि वोट बैंक खराब हो जाएगा। तथाकथित छ्द्म सेक्युलर नेता और लोग अपने धर्म को तो महत्व देते नहीं और दिखावे के लिए दूसरे धर्म के प्रति आस्था जताते हैं। अरे जो अपने धर्म का नहीं हुआ वह दूसरे ख़ाक होगा!
ओबैसी का डर
संसद में बिल फाड़कर संविधान का अपमान करनेवाला हैदराबाद सांसद ओबैसी मुस्लिम कौम को लेकर कितना जहर उगलता रहता है ? उन्हें डराता रहता है लेकिन जब हिंदुओ की बात आती है तो चुप हो जाता है। दरअसल ओबैसी की राजनीति मुसलमानों को डराने वाली है। वह खुद को मुसलमान का मसीहा साबित करना चाहता है। मुस्लिमों के डर से ही उसकी सियासत चलती है। कितना जहर भरा है उसकी जुबान में यह उसके भाषणों में स्पस्ट दिखता है। अयोध्या मसले पर उसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला मान्य नहीं लेकिन चार बलात्कारियों का एनकाउंटर हो गया तो कोर्ट की बात करने लगा। वह हैदराबाद के सांसद है लेकिन प्रियंका की मौत पर आँसू नहीं निकले मगर चार बलात्कारियो के एनकाउन्टर से विधवा विलाप करने लगा क्योंकि चारो बलात्कारी मुस्लिम था। जिसके शवों को दफनाया गया। उनलोगों के मानवाधिकार को लेकर हल्ला करने लगा। क्या वह सांसद सिर्फ बलात्कारियों का था,प्रियंका रेड्डी उसके क्षेत्र से नहीं थी?
बाकी जो भी दल विरोध में है उसके पीछे एकमात्र वजह वोट बैंक की सियासत और मोदी का अंधविरोध है।
©पंकज प्रियम
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