Tuesday, November 26, 2019

729. विनाशकाले

विनाशकाले विपरीत बुद्धि
©पंकज प्रियम
ब्राह्मणों से किस बात की इतनी नफऱत? यह कैसी नफऱत की तस्वीर है? कौन सी घृणित मानसिकता है जो इस देश की अखंडता को तोड़ना चाहती है उन्हें चिन्हित कर सरेआम दण्ड दिया जाना चाहिए। क्यों भारत छोड़ेगा ब्राह्मण? भारत किसी के बाप की जागीर है क्या? भारत को भारतवर्ष ब्राह्मणों के यज्ञ-तप और बुद्धिमत्ता ने बनाया है। उसे सुरक्षा क्षत्रियों के शौर्यबल से मिली है, भरणपोषण की जिम्मेवारी वैश्यों ने निर्वहन किया और साधन-संसाधन जुटाने का काम शूद्रों ने किया। ब्राह्मणों ने हमेशा सभी वर्णों को एकसूत्र में बांधकर रखा। जिसे तोड़ने की घृणित सोच विदेशी लुटेरे मुगल और अंग्रेजों की रही है और आज वही कार्य कुछ तथाकथित वामपंथी सोच ,छद्मसेक्युलर और भीमसेना कर रही है। भारत की आज़ादी के लिए सबसे पहली जंग ब्राह्मण मंगल पाण्डेय ने ही छेड़ी थी और चंद्रशेखर आज़ाद ने अंग्रेजों को अपनी लाश में भी सटने नहीं दिया। आजतक ब्राह्मणों ने किसी का अहित नहीं सोचा। सदैव लोगों का कल्याण ही किया और परोपकार में लगा रहा। आप राह गुजरते किसी भी ब्राह्मण को स्नेह से एक नज़र भर देखे उसका हाथ स्वतः आशीर्वाद के लिए उठ जाता है और दिल से आवाज़ निकलती है -कल्याण हो! कोई भी राजा कोई भी शासक चाहे कितना भी बलिष्ठ और शक्तिशाली क्यूँ न हो उसे सही मार्ग और ज्ञान ब्राह्मणों ने ही दिया। आजतक जितने भी बड़े नेता और मंत्री हुए उनके गुरु और सलाहकार कोई न कोई ब्राह्मण ही है। झारखण्ड में ही बड़े नेताओं को गिना देता हूँ राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी- तिवारी जी, अर्जुन मुंडा- अयोध्या नाथ मिश्र जी, हेमंत सोरेन-विनोद पांडेय जी, सुदेश महतो- हिमांशु जी इसी तरह प्रधामनंत्री सहित देशभर के तमाम नेताओं के सही मार्ग ब्राह्मण ही दिखाता  रहा है। महात्मा गाँधी के भी गुरु ब्राह्मण ही थे। ऋषि-मुनि हमेशा निस्वार्थ भाव से जगत कल्याण हेतु यज्ञ और तपस्या करते रहे। जिस जय भीम वालों ने यह लिखा है उसके तथाकथित भगवान भीमराव अम्बेडकर को भी शिक्षा दीक्षा एक ब्राह्मण ने ही दी थी। अम्बेडकर ने जिस संविधान का संयोजन किया उसका मूल आधार मनुस्मृति और चाणक्य नीति से ही जुड़ा हुआ है। चाणक्य चाहते तो खुद नन्द वंश का सफाया कर सकते थे लेकिन एक वंचित पीड़ित चन्द्रगुप्त को जमीन से उठाकर मगध का सम्राट बना दिया और मगध की रक्षा में ही अपने प्राण त्याग दिए। परशुराम, कालिदास, तुलसीदास, वशिष्ट, सुदामा, द्रोण, सावरकर,मंगल पांडेय, चन्द्रशेखर आज़ाद बाजीराव अनगिनत नाम है जिन्होंने इस धरती के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। ब्राह्मणों से शुरू से सभी वर्गों को महत्व दिया। जन्म से लेकर मृत्यु तक जितने भी संस्कार बने उसमें सभी वर्गों को पूजनीय और महत्वपूर्ण भाग दिया। चाहे वह हजामत बनानेवाला नाई हो,कुम्हार हो, धोबी हो, डोम-चाण्डाल हो, बाँस का काम करने वाला धपरा हो, बढ़ई हो या फिर पानी भरनेवाली पनिहारिन हो सबको साथ लेकर उन्हें ब्राह्मणों के समान ही उचित मान-सम्मान दिलाने की व्यवस्था की गई है। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णों को उनकी क्षमता और बुद्धि के अनुसार अपने-अपने क्षेत्र में पूरी आज़ादी के साथ कार्य करने का अवसर मिलता रहा है। "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया" के मूलमंत्र से समाज चल रहा था। भला इससे बड़ा समाजवाद क्या हो सकता है जिसमे परस्पर सहयोग और सम्मान से लोगों का सुखद निर्वाह हो। जातिगत भेदभाव तो मौजूदा आरक्षण प्रणाली ने शुरू की जहाँ परीक्षा के फॉर्म में भी जाति और धर्म लिखने की बाध्यता होती है। वेदों में, ग्रन्थ-पुराणों में, रामायण और महाभारत में कहाँ किसी का कोई जाति-धर्म वर्णित है। घृणित भेदभाव का ज़हर तो आज भीमसेना फैला रही है। यह सेना जिस राम से नफरत करती है उसे पता नहीं कि भीमराम अम्बेडकर का पूरा नाम #भिवा_रामजी_आबंडवेकर है जिसे बाद में एक देवरुखे ब्राह्मण शिक्षक #कृष्णा_महादेव_आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, ने उनके नाम से 'आंबडवेकर' हटाकर अपना सरल 'आंबेडकर' उपनाम जोड़ दिया। तब से आज तक वे आम्बेडकर नाम से जाने जाते हैं। माना कि उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया लेकिन गौतम बुद्ध को भी भगवान राम का ही एक रूप माना गया है। बुद्ध को भगवान विष्णु के दशावतार का नवम (09) अवतार माना गया है। अतः जो भीम सेना भगवान विष्णु,राम या कृष्ण की मूर्ति तोड़ते हैं वे सीधे बुद्ध का ही अपमान करते हैं।

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