हैवानों से किसी हमदर्दी, दानवों का कैसा मानवाधिकार?-3
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बलात्कारियों को अरेस्ट करने की बजाय सीधे ठोक देना चाहिए। न गिरफ्तारी होगी और न एनकाउंटर के लिए सवाल जवाब। न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी। जब सबकुछ स्पस्ट हो की बलात्कार और हत्या इन्ही लोगों ने की है तो गिरफ्तार करने की बजाय उन्हें भी सरेआम जिंदा जला देना चाहिए ताकि दूसरे घृणित सोच वाले ऐसा जघन्य अपराध करने से पहले सौ बार सोचे।
एनकाउंटर पर सवाल करने और अपराधियों से हमदर्दी करने वालों पर भी मुकदमा होना चाहिए। अगर कानून सजा न दे तो जनता को खुद उन्हें सजा देनी चाहिए। उनका सामाजिक बहिष्कार हो, जहाँ दिखे उनकी जुत्तों से धुनाई हो। जो हैवान है दानव है उसको किसी भी तरह की दया याचिका का अधिकार न हो।
अगर एक अपराधी को क्षमा याचिका दायर करने का अधिकार है तो फिर उस परिवार को भी जल्द न्याय और सार्वजनिक दण्ड देने का अधिकार मिलना चाहिए। उसे भी याचिका दायर करने का मौका मिले।
ओबैसी हैदराबाद के सांसद है उसके यहाँ रेप पीड़िता की जिंदा जलाकर हत्या कर दी गयी लेकिन 9 दिनों तक उसकी जुबाँ से एक लफ्ज़ तक नहीं निकला लेकिन जैसे ही बलात्कारियों का एनकाउंटर हुआ आवारा कुत्ते सा बाहर निकल कर रोने लगा। एक सांसद होने के नाते वह पीड़िता और उसके परिजन उसकी जवाबदेही थी लेकिन चूंकि वह हिन्दू थी इसलिए वह चुप रहा। तबरेज के लिए वह आँसू बहाने के लिए वह झारखण्ड तक पहुंच गया लेकिन एक रेप पीड़िता डॉक्टर की चार दरिंदों ने जिन्दा जल दिया लेकिन वह झांकने तक नहीं गया क्योंकि यहाँ मोब्लिंचिंग करने वाले दरिंदे उसकी कौम के थे। लिहाज़ा एनकाउंटर होते ही उसकी छाती फटने लगी। शर्म आनी चाहिए तुम्हें ओबेसी! धिक्कार है तुझपर।
यही हाल शशि थरूर जिसकी पत्नी उसके कारण मर गयी,हमेशा लड़कियों को वासना की दृष्टि से घूरता लिपटा रहता है तो बलात्कारियों के लिए हमदर्दी होगी ही। येचुरी तो वामपंथी है तो इनलोगों को मानवाधिकार सिर्फ आतंकवादी, बलात्कारी और हत्यारों के लिए ही है। शर्म आती है ऐसे लोगों पर।
हैदराबाद एनकाउंटर को लेकर जहाँ मानवाधिकार आयोग ने नोटिश जारी कर जाँच शुरू कर दी है वहीं हाइकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर सोमवार को सुनवाई की तारीख भी तय कर दी है। यही नहीं एक दर्जन से अधिक महिला और मानवाधिकार संगठनों ने एनकाउंटर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। आखिर दोषियों को सजा मिले कैसे? पीड़ितों को इंसाफ़ मिले कैसे? Ndtv and रब्बिस कुमार ने एनकाउंटर के खिलाफ विशेष बुलेटिन चलानी शुरू कर दी है। इनलोगों को चुल्लू भर पानी मे डूबकर मर जाना चाहिए। मासूमों के गैंगरेप और फिर उनकी जघन्य हत्या पर खामोश रहते हैं लेकिन जैसे ही बलात्कारियों का एनकाउंटर होता है ये गली के आवारा कुत्तों की तरह भौंकना शुरू कर देते हैं। मानवाधिकार आयोग, हाइकोर्ट और उन 15 महिला संगठनों से भी सवाल करना चाहता हूं कि क्या डॉ प्रियंका रेड्डी या फिर उन्नाव की बेटी का मानवाधिकार नहीं था जो उसके लिए एक शब्द नहीं निकला, कोई संज्ञान नहीं और रवीश ने उसकर कोई प्राइमटाइम नहीं की? जो आज सभी मुँह उठाकर बलात्कारियों का मानवाधिकार ढूंढ़ने में लगे हैं। उन न्यायाधीश से भी सवाल है कि इतने जघन्य अपराध के बावजूद बलात्कारियों को जमानत क्यूँ दी, उस वकील को जो पैसे मिले होंगे उससे अपनी बेटी,बीवी या माँ-बहन के लिए साड़ी खरीदकर इज्जत ढंक पायेगा क्या? उस कानून के रखवालों पर भी सवाल है जो कार्रवाई करने में देरी की, जब पता था कि वह कोर्ट में गवाही देने जा रही है तो उसे सुरक्षा क्यूँ नहीं दी गयी।
सवाल तो असंवेदनशील हो चुके समाज से भी है जो जलने के बाद भी एक किलोमीटर तक जान बचाने को दौड़ती लड़की को किसी ने मदद नहीं की और तमाशबीन बना रहा। अगर बलात्कारियों को पकड़ते ही गोली मार दी जाय तो फिर अपराधी अपराध करने से पहले सौ बार सोचेगा। एनकाउंटर सही हुआ या गलत इसपर सवाल उठाने की बजाय पुलिसकर्मियों की सराहना होनी चाहिए कि अपराधियों को दण्ड मिला। जनता के मत से सरकार बनती है और आज पूरे देश का एक ही मत है कि जल्द इंसाफ मिले, हैदराबाद की तरह इंसाफ मिले तो फिर इसपर जो सवाल खड़े कर रहे हैं जो याचिका दायर कर रहे हैं वे ही समाज के असली दुश्मन हैं। उन्हें चिन्हित कर पहले उनको सजा देनी चाहिए। जो हैवान है उसके साथ किसी हमदर्दी, जो दानव है उसका कैसा मानवाधिकार?
©पंकज प्रियम
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