पत्रकारिता .....चाटुकारिता ......
पत्रकारिता...अरे नीति और सिद्धन्तो से है परे
न ही मेहनत का फल मीठा .न योग्यता की पूछ
जो कर सके जी हुजूरी उसी की है जय
किसी ने क्या खूब कहा था
हो सके मुकाबिल तो अख़बार निकालो
पर क्या वाकई में है आज ऐसा ?
मुख में राम बगल में छुरी
खूब करो बोस की जी हुजूरी
तभी मिलेगी तुम्हे तरक्की
मिलेगा बोस का प्यार <कंपनी का दुलार
ये बात तुम भी गांठ में बांध लो यार
मेरी तो जमी नही तुम इसे अपनाना
पत्रकारिता के इस नये फोर्मुले से हु अनजान
शराब _कबाब गुटबंदी से हूँ दूर
तभी बढ़ नही पाया <रह गया हूँ नादान .....
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