Monday, July 19, 2010

ग्लैमर की चकाचौंध













ग्लैमर की चकाचौंध...और अँधेरा --





पत्रकारिता के नये स्वरुप और मीडिया जगत की अस्थिरता को देख आज मैं उस दिन को अपने जीवन का सबसे गलत फैसले वाला दिन मानता हू जब इस क्षेत्र में कैरियर बनाने का निर्णय लिया। दुसरे लोगो की तरह मेरे भीतर भी पत्रकारिता को अपना मिशन बनाने का जूनून सवारहुआ। यु तो मीडिया के प्रति मेरा बचपन से ही झुकाव था लेकिन इसे बतौर कैरियर अपनाऊंगा कभी सोचा नही था। ग्रेजुवेशन के बाद सिविल सेवा की तयारी में जुट गया। रांची में एक कोचिंग सेंटर में नामांकन कराकर अपने मित्रो के साथ अच्छी तयारी करने लगा। इसी दरम्यान पत्रकारिता का कीड़ा एकबार फिर कुलबुलाने लगा। लगे हाथ पत्रकारिता विभाग में नामांकन भी करवा लिया और ज्यादा ध्यान उधर देने लगा। इसी बिच आकाशवाणी में ऑडिशन पास कर उद्घोषक भी बन गया रेडिओ में अपनी आवाज देने का सपना पूरा हुआ। अखबारों में भी मेरे आर्टिकल्स छपने लगे फिर क्या था सिविल सेवा की तयारी गयी तेल लेने और मैं चौथे खम्भे पर खड़ा होने को संघर्ष करने लगा। पहले अख़बार और उसके बाद टेलीविजन की पत्रकारिता करने लगा। १० वर्षो के छोटे सफ़र में बहुत बड़ी कामयाबी तो नही लेकिन बहुत कुछ अपने दम पर कर जरुर कर दिखाया। दो-स्टिंग ओपरेशन और कई ऐसी खबरे जिसका व्यापक असर पड़ा और मुझे भी काफी सुकून मिला। खबरों के लिए मैंने अपनी जान की परवाह किये बगैर बहुत कुछ किया लेकिन उसका फलाफल मुझे कुछ नही मिला। मेरी खबरों पर चैनल ने खूब खेला ,मेरी जान पर बन आई लेकिन चैनल की और से न कोई सुरक्षा और न ही एक छोटा सा कम्लिमेंट्स भी मिला। खबरों की दुनिया में इस कदर खो गया की अपनी जिंदगी की ही खबर नही रही। समय अपनी रफ़्तार से गुजरता गया और कितना वक्त निकल गया पता ही नही चला। मीडिया में आने से पहले इसके प्रति जो आकर्षण था जो जूनून था कुछ कर गुजरने का दुनिया में छा जाने का वो अब ख़त्म हो गया। मीडिया की असली तस्वीर को बहुत करीब से देख लिया है मैंने. पत्रकारिता के मायने बदल गये है इसके मन्त्र बदल गये हैं ..इसमें आगे बढ़ने और सफल होने के अलग रस्ते हैं। चाटुकारिता करो ,बोस की सही गलत बातो में हां से हां मिलाओ ,मैनेजमेंट के खिलाफ कभी कुछ कहने का दुस्साहस मत करो .बोस इस आलवेज राईट का फ़ॉर्मूला अपनाओ .गाँधी के तीन मंत्रो की तरह 'कुछ मत सुनो ,कुछ मत देखो और कुछ मत कहो 'को अपना जीवन आधार बनाना होगा और हाँ शराबखोरी तो सबसे बड़ा मन्त्र है इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए ....इन सब चीजो को मैंने नही अपनाया शायद इसलिये मैं थोडा पीछे रह गया लेकिन मुझे संतोष है की मैंने जितना भी हासिल किया अपनी काबिलियत और मेहनत की बदौलत ..इस बात का गर्व है की चापलूसी ,जी हुजूरी और चाटुकारिता के मन्त्र से मैंने खुद को दूर रखा...लेकिन मीडिया के फिल्ड में ये बाते बहुत जरुरी है तभी आप आगे बढ़ सकते हो ...आज मुझे वाकई में बहुत अफ़सोस हो रहा है की इन सब बातो को समझे बगैर इस कष्स्त्र में कूद गया और अपने जीवन का बहुमूल्य समय ख़त्म कर दिया ..खैर बिता समय तो नही लौटता लेकिन इस क्षेत्र की चकाचौंध में आ रहे तमाम नवयुवको से मै यही कहना चाहता हू की अगर पत्रकारिता के इन नये मंत्रो को अपना सकते हो तभी आगे बढ़ो...मीडिया में हम पूरी दुनिया की आवाज उठाते है लेकिन अपनी आवाज उठाने का अधिकार नही है। तमाम प्रयासों के बावजूद भी नौकरी के स्थायित्व की कोई गारंटी नही है ,मंदी के नाम पर जिस तरह से बड़े-बड़े दिग्गज पत्रकरों को भी के मिनट में बाहर का रास्ता दिखा दिया जा रहा है वो गंभीर स्थिति है। जितने भी बड़े पद पर और नाम के पत्रकार हो वो अपने स्थायित्व को लेकर कभी निश्चिंत नही हो सकते... १०-१२ घंटे की शारीरिक -मानसिक मेहनत के बावजूद भी आपको इतनी तनख्वाह नही मिल सकती की आप सुकून की जिंदगी जी सके ,हाँ ऊपर के मंत्रो को अपना लिया तो आपके वारे -न्यारे है.आपकी तनख्वाह अलग होगी इन्क्रीमेंट भी अलग होगी-॥

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